हिंदू भ्रम एक छलावा हैं!
हिंदू भ्रम एक छलावा हैं!
मयनोज वानखेड़े बोरदेही
भारत के लोग जिस हिंदू के भ्रम में हैं वह एक छलावा हैं वास्तव में यह बराहमन वर्चस्व का खेल हैं जिसमें बराहमन सर्वश्रेष्ठ हैं जिसमें दो तत्सम वर्ण क्षत्रिय वैश्य हैं और उनसे निचे सेवक जाति शूद्र वर्ण हैं जो पशुपालन अन्न उत्पादन वस्त्र आभूषण कपड़े धोने बाल काटने औजार बनाने वाली श्रमण जातियां हैं जो छूकर सेवा देती हैं जिन्हें शिक्षा शस्त्र का अधिकार नहीं था तभी इनके बीच एक कहावत प्रचलित हैं काला अक्षर भैंस बराबर। शैक्षणिक आर्थिक सामाजिक राजनीतिक दृष्टि से पिछड़ी जातियां हैं उन्हें इस व्यवस्था को तोड़कर संविधान ने अन्य पिछड़ा वर्ग की सुची में सामिल कर अनुच्छेद 340 में सभी अधिकार दिए परंतु 77 वर्षों की कांग्रेस बीजेपी की किसी सरकार ने ओबीसी की जाति आधारित जनगणना ना कर उन्हें उनकी संख्या के अनुपात मे अधिकार नहीं दिए। इनमें सबसे निम्न माने जाने वाली अछुत जातियों तथा जंगली जन जातियों को अंतज्य अस्पृश्य की श्रेणी में रख मरे पशुओं पर आधारित जिवन जिने तथा गंदगी साफ करने के लिए बाध्य किया गया और जिन्हें संविधान में एससी एसटी कहां गया यह सभी वर्ण जातियों के लोग बराहमन के अधीन हैं निम्न हैं और लगभग 7000 जातियों के टूकडों में बांटे गए लोगों का यह समूह हैं जिन ओबीसी एससी एसटी से बराहमन दान दक्षिणा तो लेता हैं परंतु उनके घर का या हाथ का पका हुआ भोजन ग्रहण नहीं करता हैं।
आज भी हाटलो का पका हुआ खाना लेकर नई थाली गिलास में ओबीसी एससी एसटी के यहां भोजन कर तथाकथित सवर्ण जातियो के नेता समरसता की नौटंकी करते दिखाई देते है जबकि वह वास्तव में घोर जातिवादी हैं जो कभी भी ओबीसी एससी एसटी को हक अधिकार देने को तैयार नहीं हैं।
फिर असमान भेदभाव की व्यवस्था वाले कैसे एक पहचान के हिंदू हो सकते हैं?
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