मानव मानव में उंच नीच का भेद वह धर्म नहीं षंड़यंत्र है मानव समाज के लिए हानिकर है।

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मानव मानव में उंच नीच का भेद वह धर्म नहीं षंड़यंत्र है मानव समाज के लिए हानिकर है।

मैं एक मानव हूं मानवता मेरा धर्म है सभी मानव समान हैं जो मानव मानव में ऊंच नीच का भेद करे वह धर्म नहीं षड्यंत्र है और मानव समाज के लिए हानिकारक है।यह संविधान के समता स्वतंत्रता बन्धुत्व और न्याय जैसे महान मानवीय मूल्यों के खिलाफ है। जिसके पास तर्कशक्ति नहीं होती परिवर्तन का साहस नहीं होता, अच्छी बातें ग्रहण करने की क्षमता नहीं होती जो लकीर के फकीर होते हैं, जिनका स्वाभिमान मर चुका होता है जिन्हें नीच बने रहकर भी अंधविश्वास को धर्म मानने में गर्व महसूस होता है वे स्वाभिमान शून्य लोग ऐसे ही अनाप-शनाप आरोप लगाकर ब्राह्मणों द्वारा थोपे गए झूठ पाखंड अंधविश्वास की रक्षा करने का असफल प्रयास करते हैं और समाज में उपहास का पात्र बनते हैं, उन्हें ब्राह्मणों द्वारा लिखे रामायण महाभारत जैसी काल्पनिक कहानियों को पढ़ना पुण्य का काम लगता है बुद्ध फुले साहू अंबेडकर आदि महापुरुषों के साहित्य पढ़ना पाप लगता है, ऐसे ही ब्राह्मणों के मानसिक गुलामों को उस गुलामी का एहसास कराने का प्रयास लाखों करोड़ों लोग रात-दिन कर रहे हैं लेकिन ये विक्षिप्त होकर उनके ऊपर ही गालियों और कटु शब्दों की बौछार करते हैं  लेकिन समतावादी महापुरुषों की वैज्ञानिकता वादी नैतिकता वादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार में लगे लोग उनके इन कृत्यों से विचलित न होकर और मजबूती से अपने मिशन पर लग जाते हैं क्योंकि उन्हें पूर्ण विश्वास होता है कि समतावादी महापुरुषों की विचारधारा की स्थापना से ही ब्राह्मण वादी पाखंड अंधविश्वास को धर्म मानकर ढोने वाले इस शूद्र बहुजन समाज का कल्याण हो सकता है तभी यह समाज  एकजुट होकर भारत से ब्राह्मण शाही को ध्वस्त करके शासक वर्ग बनकर इस देश को समृद्ध एवं प्रबुद्ध भारत बना सकता है।

 

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