खनिज नीति अर्थदंड के नाम पर मात्र राजस्व उगाही खनिज अपराध करोबार बन गया हैॽ

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खनिज नीति अर्थदंड के नाम पर मात्र राजस्व उगाही खनिज अपराध करोबार बन गया हैॽ

भरत सेन अधिवक्ता बैतूल 

बैतूल। मप्र राज्य। खान एवं खनिज अधिनियम 1957 के तहत मध्य प्रदेश राज्य सरकार ने मप्र खनिज नियम 2022 बनाए हैं। सरकार दर सरकार मप्र राज्य सरकार की खनिज नीति बदलते चली गई और सरकार को राजस्व की उगाही में मददगार रहीं हैं। खनिज नियम 2022 अपराध को रोकने में विफल साबित हुआ हैं बल्कि खनिज अपराध एक कारोबार बन गया हैं। जैसे जंगल से इमारती लकड़ी का  एक पेड़ चोरी किया और बाजार में बेच दिया, फायदा हो गया। रायल्टी का खनिज और चोरी का खनिज बाजार में एक ही दाम पर बिकता हैं। 

मप्र राज्य सरकार की खनिज नीति का महत्वपूर्ण भाग अर्थदण्ड की वसूली करना हैं, इसलिए खनिज नीति में अर्थदण्ड भारी मात्रा में लिया जाता हैं। यदि एक घनमीटर पर 125 रू0 रायल्टी हैं तो 10 घनमीटर के डम्पर पर 1250 रू0 की रायल्टी सरकार को मिलेगी लेकिन यदि डम्पर पर अर्थदण्ड आरोपित किया जाता हैं तो सरकार को 02 लाख रू0 तक मिलते हैं। 

राजस्व विभाग और पुलिस की मदद से खनिज का अवैध उत्खन्न, परिवहन एवं भण्डारण का अपराध का कारोबार चलता रहता हैं जिसमें तहसीलदार, अनुविभागीय अधिकारी राजस्व एवं पुलिस वसूलिया करते रहती हैं। 

मप्र राज्य सरकार से राजस्व वृद्धि का लक्ष्य तय होता हैं, वाहनों और मशीनो को जप्त करना प्रारंभ कर दिया जाता हैं। एैसे मामले भी देखने के लिए मिलते हैं जिसमें खनिज नहीं था, फिर भी पुलिस ने जप्त कर लिया, खनिज विभाग ने रिक्त वाहनों पर अवैध परिवहन में जप्त बता दिया। खनिज के वाहनों में रायल्टी से अधिक का खनिज पाया गया तो अवैध उत्खनन का मामला खनिज विभाग ने दर्ज कर लिया। वाहन एवं मशीने तभी मुक्त हुए जब अर्थदण्ड रााशि जमा कर दी गई। 

अपराध को नियंत्रित करने के लिए कारावास एवं अर्थदण्ड आवश्यक होता हैं। मात्र अर्थदण्ड आरोपित करके खनिज अपराध की रोक थाम संभव नहीं हैं। इसलिए विचारण न्यायालय अर्थदण्ड एवं कारावास दोनो से अपराधी को दंडित करती हैं। मप्र राज्य सरकार की खनिज नीति में मात्र अर्थदण्ड महत्वपूर्ण हैं, इसलिए खनिज अपराध करों, अर्थदण्ड जमा करों और मुक्त हो जाओं । इस नतीजा यह सामने आ रहा हैं कि एक वर्ष में एक खनिज अपराधी कम से कम दो बार जुर्माना अदा कर रहा हैं, संख्या इससे अधिक भी हो सकती हैं। 

पुलिस ने खनिज चोरी एवं सार्वजनिक संपत्ति क्षति का मामला दर्ज कर न्यायालय में पेश कर दिया हैं। जुर्माना राशि भरी गई हैं तो यह साबित हैं कि वाहन में खनिज तो मौजूद था। वाहन चालक और वाहन स्वामी दोनो मामले में आरोपी हैं लेकिन पता नहीं हैं कि आगे क्या होगा ? मामला छूटेगा कैसे ? 

मामले में देखने पर यह मिल रहा हैं कि खनिज अपराध के मामलों में अधिवक्ता भारतीय दण्ड विधान के मापदण्डों पर पैरवी कर रहे हैं जरूरत हैं खान एवं खनिज अधिनियम 1957 के मापदण्डों पर पैरवी करने की हैं। 

अधिवक्ता नियुक्त करने में ज्यादातर मामलों में गलती होती हैं। एक एैसा अधिवक्ता जो सिविल और क्रिमिनल मामलों में पैरवी करता हैं, या फिर केवल सिविल के मामलों में पैरवी करता हैं या दांडिक मामलों में पैरवी करता हैं, दोनो ही अधिवक्ता हमारे किसी काम के नहीं हैं। खनिज अपराध में खनिज कानून का जानकार अधिवक्ता हमको चाहिए। जमानत से ज्याद दोषमुक्ति पर जोर देना चाहिए। 

हाई कोर्ट में धारा 482 दण्ड प्रक्रिया संहिता या बीएनएसएस की धारा 528 में खनिज अपराध के मामलों में याचिका सुनवाई के लिए पेश करना चाहिए। साथ में राजस्व न्यायालय की कार्यवाही की प्रमणित प्रति हाई कोर्ट में पेश करना चाहिए। कालंातर में इसका लाभ मिलता हैं। 

विचारण न्यायालय में राजस्व विभाग की कार्यवाही की प्रमाणित प्रति पेश करना चाहिए और खान एवं खनिज अधिनियम 1957 के मापदण्डों पर गवाहों से सवाल जवाब करना चाहिए। अदालत मंे साबित करना चाहिए कि अपराध चोरी का नहीं हैं बल्कि खान एवं खनिज अधिनियम का अपराध हैं जिसकी क्षति राशि राज्य सरकार को अदा कर दी गई हैं। यह काम खनिज अपराध का विशेषज्ञ अधिवक्ता ही कर सकता हैं। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के पूर्व फैसलों को पेश करना चाहिए। 

विचारण न्यायालय में पेशी दर पेशी खनिज अपराधी को मौजूद रहकर कार्यवाही की निगरानी करना चाहिए, कभी भी गैर हाजिर नहीं रहना चाहिए। अंतिम बहस में बचाव पक्ष का अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के पूर्व के कितनी संख्या में पूर्व निर्णय पेश कर रहा हैं, यह देखना चाहिए। खनिज अपराध में जमानत बेहद आसान काम हैं, लेकिन मुकदमा लड़कर दोषमुक्ति बेहद कठिन काम हैं। इसलिए खनिज अपराध का विशेषज्ञ अधिवक्ता से ही पैरवी करवाना चाहिए। इसका लाभ आगे जाकर मिलता हैं। Bharat Sen Advocate, Chamber No 24, Civil Court BETUL (MP) 9827306273

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