यशवंतराव को दुनिया की कड़वी सच्चाई … बाबा साहेब आंबेडकर की कठिन संघर्षों कुर्एबानीयो को दलित बहुजन एहसान फरामोश भुल जायेंगे।
यशवंतराव को दुनिया की कड़वी सच्चाई … बाबा साहेब आंबेडकर की कठिन संघर्षों कुर्एबानीयो को दलित बहुजन एहसान फरामोश भुल जायेंगे।
आप में से ज्यादातर लोग बाबासाहब डॉ.भीमराव अम्बेड़कर के जन्म से मृत्यु तक जातिवाद की प्रताड़ना पढ़ाई और जीवन जीने के लिए संघर्ष के संदर्भ सुना और जानते होंगे पर कभी उनके पुत्र यशवंतराव अम्बेड़कर नाम नहीं सुना होगा इसका कारण यह हैं, कि यशवंतराव अम्बेड़कर ने स्वयंम को बहुजन आंदोलन से अलग रखा वो अपने पिता से खिन्न थे और घर मे पिता पुत्र के बीच बहुत विवाद होते थे.. यंशवतराव आम्बेडकर का जन्म 1912 में हुआ और मृत्यु 1977 में हो गई थी।1935 मे माता रमाबाई की मृत्यु के बाद विवाद इतना बढ़ा कि बाबा साहब दुःखी हो गये और फिर उन्होने यशवंतराव जी को व्यस्त रखने के लिये के लिये उनके नाम पे एक निजी प्रिंटिंग प्रेस खोल दिया, उस प्रिंटिंग प्रेस के संचालन मे यशवंतराव जी ने स्वयंम को पुरी तरह झोंक दिया और दूसरे घर मे रहने लगें,आखिर क्या वज़ह थी कि बाबा साहब का एकमात्र पुत्र यशवंतराव अम्बेड़कर उनके खिलाफ था ? वजह जान से आप भी मानने लगोगे कि यशवंतराव अम्बेड़कर का गुस्सा ज़ायज़ था और वो सच बोलता थे,बाबासाहेब का विवाह 1907 मे हुआ था और विवाह के 5 वर्ष बाद 1912 मे यशवंतराव अम्बेड़कर जी पैदा हुये थे,यशवंतराव ने अपनी आंखों के सामने अपने तीन भाईयो गंगाधर,रामादेश, राजरतन और एक बहन इंदु को भूख और बीमारी से दम तोड़ते देखा, वह रोकता था अपने पिता को और कहता था कि क्यों करते हो व्यर्थ मेहनत ये एहसान फरामोश दलित आपको भूल जायेंगे और दिन रात मंदिर मे घुसने के सपने देखेंगे, ब्राह्मणीयो पार्टी की राजनीति को अपनायेंगे भविष्य तलाशेंगे,और बाद मे यही हुआ…
यशवंतराव सच बोलते थे…
यशवंतराव ने देखा कि उसके भाई राजरत्न की लाश को शमशान ले जाने की जगह उसके पिता दलितों के लिये बनाये गये साईमन कमीशन की मीटिंग अटेंड करने चले गये राजरतन की लाश को शमशान उसके चाचा और दूसरे लोग ले गये थे……
यशवंतराव ने देखा कि उसके भाई राजरत्न की लाश को ढांकने के कफ़न के लिये उनके पास पेसा नही था,उसने देखा कि उसकी माता ने अपनी साड़ी का एक छोटा टुकड़ा फाड़ के कफ़न की व्यवस्था की वह कोसता था अपने पिता को और कहता था कि इन एहसान फरामोश दलितों की भलाई के लिये क्यों मेरी माता को रुला रहें हो, ये एहसान फरामोश दलित आपको भूल जायेंगे और उपवास रखने मे सवर्णों से होड़ करेंगे और बाद मे यही हुआ यशवंतराव सच बोलते थे…यशवंतराव ने बचपन से ही देखा कि किस तरह उसके पिता अपने परिवार को नज़र अंदाज़ करके दलितों के उत्थान के लिये प्रयासरत थे,बाबा साहब सन 1917 से ही अंग्रेज सरकार को भारत मे दलितों को अधिकार दिलाने के लिये हर महीने पत्र लिखते थे 1917 से ले के 1947 तक , 30 साल तक लिखे पत्रों का ही असर था कि आज़ादी देने के लिए अंग्रेजों ने देश व्यक्ति से संविधान लिखने की शर्र रख दी कि और पुना पेक्ट हुआ दलितों को आरक्षण दिया मिला साथ उच्च योग्यता से संविधान लिखने अवसर मिला।यशवंतराव ने अपनी आंखों से देखा कि उसका पिता तो स्कोलरशिप पे कोलम्बिया में पढ़ रहें हैं, और मुम्बई जैसे बड़े शहर मे अपना खर्चा चलाने के लिये उसकी माता रमाई गोबर के उपले बना बना के बेचती हैं, उसने देखा कि उसकी मां अपने बच्चों के इलाज़ के लिये अपने रिश्तेदारो से बार-बार वित्तीय सहायता हेतु विनती करती है और रिश्तेदार इधर उधर के बहाने बना के टाल देते हैं, वह कोसता था अपने पिता को और कहता था कि इन एहसान फरामोश दलितों के लिये क्यों अपने परिवारजनों को दुःखी कर रहे हो, ये एहसान फरामोश दलित आपको भूल जायेंगे और दिन रात देवी देवताओ के भजन गायेंगे और बाद मे यही हुआ। यशवंतराव सच बोलते थे…यशवंतराव ने अपनी आंखों से अपनी माता रमाबाई को सन 1935 मे भूख और बीमारी से दम तोड़ते देखा…इन सब अनुभवों ने छोटी उम्र मे ही यशवंतराव को दुनिया की कड़वी हक़ीकत से वाक़िफ करा दिया वो जानता थे कि बाबा साहब चाहें अपनी जान न्योछावर कर दें दलितों के उत्थान के लिये, ये एहसान फरामोश दलित कभी उनका बलिदान ना समझेंगे ये गद्दार लोग बाबा साहब को भूल जायेंगे और बढ़ चढ़ के जगराता आदि करायेंगे और बाद मे यही हुआ यशवंतराव सच बोलते थे….यशवंतराव जानते थे कि यही दलित बाबा साहब की जयंती मे 10 रुपये का चंदा देने मे नाक सिकोडेंगे और मंदिर बनाने के लिये 5000-10,000 रुपये आसानी से देंगे और बाद मे यही हुआ यशवंतराव सच बोलते थे….यशवंतराव जानते थे कि जब किसी शहर मे बाबा साहब की जयंती मनायी जायेगी तो शहर के 20-30 हजार दलितो मे से केवल 100-150 लोग ही जयंती मनाने आयेंगे ताकि कोई उन्हे महार,चमार,भंगी ना समझ बैठें और बाद मे यही हुआ यशवंतराव सच बोलते थे…..यशवंतराव जानते थे कि आरक्षण का फायदा उठा के यही दलित लोग सबसे पहले अपने लिये केवल गाड़ी और बंगले का इंतेज़ाम करेंगे और दूसरे दलित भाइयों की परछाई से भी दूर रहेंगे एक बंगला बन जाने के बाद दूसरे बंगले का इंतेज़ाम करेंगे और दूसरा बंगला बन जाने के बाद तीसरे बंगले का इंतेज़ाम करेंगे और बाद में यही हुआ। दलित बहुजन ब्राह्मणी जातिवादीयो की राजनीति पार्टीयो में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे ताकत बढ़ा रहे है।
