
वंचित दलित अस्पृश्य समाज का नेता समाज का प्रतिनिधित्व करने के बजाय पार्टियों के हरिजन नेता बन कर रह गये है?
वंचित दलित अस्पृश्य समाज का नेता समाज का प्रतिनिधित्व करने के बजाय पार्टियों के हरिजन नेता बन कर रह गये है?
अंग्रेज शासन काल में सिखों और अल्पसंख्यकों मुस्लिमो को निर्वाचन राजनीति प्रतिनिधि का अधिकार था लेकिन अछुतों को नही था तीसरे गोलमेज सम्मेलन में डाॅ बाबा साहेब आंबेडकर ने अछुतों के लिए अलग से राजनीतिक प्रतिनिधि की मांग लेने पर महात्मा गांधी ने विरोध करते पुना के यरवदा जेल में अनशन पर बैठे गये थे।24 सितंबर 1932 को डॉ बाबासाहेब आंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच पुना के यरवदा जेल में अलग निर्वाचन क्षेत्र को लेकर समझौता हुआ और वंचित दलित अस्पृश्य जाति को आरक्षण दिया गया। और समान अधिकार के तहत राजनैतिक आरक्षण की लागू हुआ। राजनैतिक आरक्षण में वंचित दलित अस्पृश्य समुदाय से समाज का प्रतिनिधित्व पहुंचना चाहिए लेकिन ऐसा नही हो रहा है।1952 में प्रथम चुनाव में जब बाबासाहब अम्बेडकर चुनाव हारे थे और एक दूसरा अछूत बोरकर चुनाव जीते तब बोरकर बाबासाहब अम्बेडकर से मिलने गये। तो उन्होंने बाबासाहब अम्बेडकर से मुस्कुराते हुए कहा कि साहब आज मैं चुनाव जीता हूँ, मुझे वास्तव में बहुत ही खुशी हो रही है!
तब बाबासाहब अम्बेडकर ने कहा कि तुम जीत तो गये तो अब क्या करोगे और तुम्हारा कार्य क्या होगा ? तब बोरकर ने कहा कि मैं क्या करुंगा जो मेरी पार्टी कहेगी वो करुँगा।
तब बाबासाहब अम्बेडकर ने पूछा कि तुम सामान्य सीट से चुनाव जीते हो ? तो बोरकर ने कहा कि नहीं मैं सुरक्षित सीट से चुनाव जीता हूँ जो आपकी मेहरबानी से संविधान में दिये गये आपके अधिकार के तहत ही जीता हूँ।
बाबासाहब अम्बेडकर ने बोरकर को चाय पिलायी ! बोरकर के जाने के बाद बाबासाहब हंस रहे थे तब नानकचन्द रत्तू ने पूछा कि साहब आप क्यों हंस रहे हो? तब बाबासाहब अम्बेडकर ने कहा कि बोरकर अपने समाज का नेतृत्व और प्रतिनिधित्व करने के बजाय पार्टी के हरिजन बन गये हैं। आज कल हमारे समाज के सांसद, विधायक अपने समाज का प्रतिनिधित्व करने के बजाय पार्टियों के हरिजन नेता बन कर ही रह गये हैं।वंचित दलित अस्पृश्य समाज का नेता समाज का प्रतिनिधित्व करने के बजाय पार्टियों के हरिजन नेता बन कर रह गये है?