
प्रधान मंत्री मुद्रा योजना के चैक बांउस के आरोपी सावधान ? सरकारी योजना को समझे बिना बचाव संभव नहीं हैं
प्रधान मंत्री मुद्रा योजना के चैक बांउस के आरोपी सावधान ?
सरकारी योजना को समझे बिना बचाव संभव नहीं हैं !
Bharat Sen Advocate Chamber No 24, Civil Court BETUL (MP) 9827306273
प्रधान मंत्री मुद्रा योजना ऋण की वसूली चैक बाउंस कानून 1881 के जरिए की जा रही हैं। मुद्रा योजना में ऋण स्वीकृत करते समय बैंक ने हस्ताक्षर युक्त चैक बुक लेकर रख ली थी। ऋण लेने वाले की जब तक कारोबार चला तब तक मासिक किश्तो की अदायगी करता चला गया। बाजार में अचानक मंदी आ गई, व्यापार ठप्प हो गया, ऋण खाता एनपीए हो गया। बैंक ने बकाया ऋण राशि की वसूली के लिए चैक बाउंस का मुकदमा लाकर पेश कर दिया हैं। न्यायालय ने देखा कि सरकारी बैंक हैं, ऋण लिया हैं, चैक पर हस्ताक्षर हैं, ऋणी को दोषसिद्ध कर दिया गया हैं। अपीलीय अदालत ने 20 प्रतिशत चैक राशि जमा करने के लिए आदेश दिया हैं। चैक राशि 10 लाख हैं, जिसका 20 प्रतिशत 02 लाख रू0 आदेशानुसार जमा करना हैं। ऋणी व्यक्ति के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो चुका हैं।
परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 ऋण वसूली का कानून नहीं हैं बल्कि चेक राशि की वसूली का कानून हैं। चैक राशि गैर कानूनी नहीं होना चाहिए। भारत सरकार ने ऋण वसूली के लिए अलग से कानून बनाए हैं, ऋण वसूली के लिए ऋण वसूली अधिकरण गठित किए हैं। चैक बाउंस कानून का लक्ष्य वित्तीय संस्थाओं से ऋण लेकर व्यापार करने वाले ऋणी की वित्तीय स्थिति खराब होने पर व्यापार ठप्प हो जाने या व्यापार में विफल हो जाने पर ऋणी व्यक्ति को अभियोजित करना, ऋणी व्यक्ति पर मुकदमा चलाना, कारावास भेजना नहीं हैं।
बैंक एवं वित्तीय संस्थाएं चैक बाउंस कानून के जरिए प्रधान मंत्री मुद्रा ऋण की वसूली कर रहीं हैं। बैंक ने ऋण देते समय चैक बुक पर हस्ताक्षर लेकर रख लिया था। ऋण खाता एनपीए होने के बाद बैक पुराने हस्ताक्षर युक्त चैक के जरिए ऋण राशि की वसूली कर रहा हैं।
मुम्बई हाई कोर्ट ले पीनाक भारत एण्ड कंपनी विरूद्ध अनिल रामराव नायिक 2023 (1) CiVCC 297 में वित्तीय संस्थाओं को चैक बाउंस के मामले में तगड़ा झटका दे दिया हैं। चैक जारीकर्ता को सूचित किए बिना एवं सहमति प्राप्त किए बिना, चैक की रिक्त प्रविष्टियों को पूर्ण करना अवैध हैं, चैक शून्य हैं।
न्यायालय में बैंक ने प्रधान मंत्री मुदा योजना में दिए गए ऋण की वसूली के लिए पुराने चैक का प्रयोग ऋणी व्यक्ति के विरूद्ध किया हैं। आरोपी को यह साबित करना हैं कि प्रश्नगत् चैक पुराना हैं, आरोपी को सूचित एवं सहमति प्राप्त किए बिना ही बैंक ने चैक की रिक्त प्रविष्टियों को पूर्ण किया हैं। इसके लिए आरोपी को दस्तावेजी साक्ष्य पेश करना आवश्यक हैं जिससे यह साबित होना चाहिए कि चैक पुराना हैं।
न्यायालय चैक बाउंस के मामलों में सरकारी बैंक की ऋण वसूली के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखती हैं लेकिन चैक बाउंस का परिवाद, मांग सूचना पत्र और शपथ पत्र में वैधानिक दोष मौजूद हैं, परिवाद एवं मांग सूचना पत्र लेखन में कानूनी गलती हैं, आवश्यक दस्तावेजो का अभाव हैं तो परिवाद पत्र निरस्त हो सकता हैं और आरोपी दोषमुक्त हो सकता हैं।
चैक बांउस के आरोपी ऋण लेते समय और ऋण लेने के बाद एक बड़ी गलती करते हैं, बैंक द्वारा जारी नोटिस का जवाब अधिवक्ता के माध्यम से देते नहीं हैं। बैंक द्वारा भेजे गए प्रत्येक नोटिस का जवाब देना चाहिए लेकिन अधिवक्ता का चयन सावधानी से करना चाहिए। चैक बाउंस का विशेषज्ञ अधिवक्ता जो कि आरोपी की ओर से पैरवी करने में अभ्यस्थ हैं, सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट के पूर्व फैसलो की जानकारी रखता हैं, सरकारी योजनाओं में दिए गए ऋणी प्रकृति, प्रधान मंत्री योजना की पूर्ण जानकारी रखता हैं, वही अधिवक्ता चैक बाउंस के मामले से मुक्ति दिला सकता हैं। चैक बाउंस के मामले में अधिवक्ता का चयन मायने रखता हैं क्योंकि अधिवक्ता का कानूनी ज्ञान एवं व्यवहारिक ज्ञान ही दोषमुक्ति का कारण बनता हैं।
अदालते चैक बांउस के मामलों में बैंक द्वारा दिए गए सरकारी योजनाओं में लगातार दोषसिद्धि कर रहीं हैैं तो उसके कारण हैं। चैक बांउस का आरोपी ने बैंक के नोटिस का जवाब नहीं दिया हैं, नोटिस मिलने पर पैसा नहीं दिया हैं, चैक बाउंस के मामले में पैरवी करने वाले अधिवक्ता को सरकारी योजना की पूर्ण जानकारी नहीं थी, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसलो को आरोपी के बचाव में पेश नहीं किया गया था।
चेक बाउंस के मामलों में अन्य सिविल एवं क्रिमिनल मामलों की तरह पैरवी नहीं की जाती हैं। चैक बांउस मामलों में आरोपी की ओर से पैरवी करने वाले अधिवक्ता अलग होते हैं। चैक बांउस के मामलों में सिविल एवं क्रिमिनल मामलों की तरह अक्सर पैरवी की जाती हैं तो आरोपी दोषसिद्धि हो जाता हैं क्योंकि कानून के मापदण्ड अलग अलग होते हैं। चैक बांउस के मामलों में आरोपी की ओर से पैरवी करने वाले अधिवक्ता को लिखित तर्क पेश करना चाहिए, तर्क के ज्ञापन में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसलो को लिखते हुए लिखित बहस तैयार करना चाहिए, अन्यथा लिखित बहस का कोई अर्थ नहीं हैं।