
मणिपुर की पीड़ा और केंद्र सरकार की असंवेदनशीलता: एक चिंताजनक वास्तविकता
मणिपुर की पीड़ा और केंद्र सरकार की असंवेदनशीलता: एक चिंताजनक वास्तविकता
✍️ मोहम्मद उवैस रहमानी 9893476893
मणिपुर में हालिया घटनाओं ने देश को एक बार फिर झकझोर कर रख दिया है। एक दर्दनाक और भयानक घटना में एक महिला के साथ पहले बलात्कार किया गया और फिर उसे जिंदा जला दिया गया। यह घटना मणिपुर में जारी हिंसा और अराजकता का सिर्फ एक उदाहरण है। अफसोस की बात यह है कि मणिपुर में हिंसा का यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है, और आम लोगों की सुरक्षा खतरे में पड़ी है।
*मणिपुर में स्थिति: सरकार की अनदेखी और आम जनता की पीड़ा*
मणिपुर में जातीय तनाव, साम्प्रदायिक विवाद और लगातार हो रही हिंसक घटनाएं वहां की स्थिरता को लगातार कमजोर कर रही हैं। वहां की जनता अपनी सुरक्षा, मानवीयता और बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है। सबसे दुखद बात यह है कि मणिपुर की समस्याओं को केंद्र सरकार ने नजरअंदाज किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न तो इस मुद्दे पर खुले तौर पर बात की और न ही इस समस्या के समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं।
देश के अन्य राज्यों में घटने वाली छोटी-छोटी घटनाओं पर तुरंत प्रतिक्रिया देने वाले प्रधानमंत्री मणिपुर के जटिल हालातों पर न तो टिप्पणी कर रहे हैं और न ही किसी प्रकार की मदद पहुंचा रहे हैं।
*मोदी सरकार की प्राथमिकताएं: मणिपुर की उपेक्षा*
मोदी सरकार का इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रखना यह दर्शाता है कि मणिपुर जैसी समस्याओं को प्राथमिकता देने के बजाय केंद्र सरकार अपनी चुनावी और राजनीतिक प्राथमिकताओं में व्यस्त है। यह व्यवहार न केवल मणिपुर की जनता के प्रति असंवेदनशीलता को दर्शाता है बल्कि यह भी इंगित करता है कि सरकार को उन मुद्दों की परवाह नहीं है जो राजनीतिक दृष्टिकोण से उन्हें फायदा नहीं पहुंचाते।
*समस्या का समाधान और राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता*
इस समय मणिपुर के लोगों को केवल सरकार की आवश्यकता नहीं है, बल्कि पूरी देश की सहानुभूति और एकजुटता की जरूरत है। केंद्र सरकार को अपने दायित्व को समझते हुए मणिपुर में शांति स्थापित करने के लिए कदम उठाने चाहिए। सिर्फ “सब चंगा सी” का ढोल पीटने से सच्चाई नहीं बदलती, और एक राष्ट्र के नेता का कर्तव्य होता है कि वह सभी नागरिकों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करे।
अगर सरकार ने जल्द ही इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए, तो मणिपुर की यह स्थिति न केवल वहां की जनता को और अधिक दुखदायी संकट में धकेलेगी बल्कि भारत की राष्ट्रीय एकता और अखंडता पर भी सवाल उठाएगी।