
एससी एसटी आरक्षण में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप एससी एसटी समुह का विभाजन से पदोन्नति आरक्षण खत्म करने का षंड़यंत्र ?
एससी एसटी आरक्षण में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप एससी एसटी समुह में विभाजन पदोन्नति आरक्षण खत्म करने का षंड़यंत्र ?
सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण में हस्तक्षेप का अधिकार राज्यों को दिया है ,जबकि डॉ. आंबेडकर ने इसका पुरजोर विरोध किया था। संविधान में इसका कोई प्रावधान नहीं है। राज्यों की कौन कहे, केंद्र की कार्यपालिका को भी इसमें हस्तक्षेप का अधिकार नहीं था।
एससी-एसटी के आरक्षण और एसटी को मिले अन्य विशेषाधिकारों ( अनूसूची 5 और 6 ) को में हस्तक्षेप का अधिकार राज्यों को नहीं है। राज्य न तो इसमें कुछ को जोड़ सकता है और न ही हटा सकता है। न ही इसमें किसी भी तरह का हस्तेक्षप और परिवर्तन कर सकता है। यहां केंद्र की कार्यपालिका ( कैबिनेट) भी इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती थी।
एससी-एसटी की सूची, आरक्षण और एसटी को मिले अन्य विशेषाधिकार में कोई परिवर्तन का करने का अधिकार अनुच्छेद 341 (1) और 341 ( 2 ) के तहत सिर्फ राष्ट्रपति को है। राष्ट्रपति के माध्यम से सिर्फ संसद को।
एससी-एसटी सूची, आरक्षण और अन्य विशेषाधिकारों में किसी भी तरह के परिवर्तन का अधिकार केंद्र सरकार को भी नहीं हैं। राष्ट्रपति के माध्यम से यह अधिकार सिर्फ और सिर्फ संसद को है।
सिर्फ संसद ही एससी-एसटी की सूची में कोई परिवर्तन कर सकती है, उसमें कुछ जोड़ और घटा सकती है। यहां तक की सुप्रीमकोर्ट के वर्तमान निर्णय से पहले यदि एससी-एसटी के आरक्षण में कोई विभाजन करना है, तो वह अधिकार भी सिर्फ राष्ट्रपति ( संसद) को था।
संविधान के इसी प्रावधान को ध्यान में रखते हुए पांच जजों की सुप्रीमकोर्ट की पीठ ने 2004 में एससी-एसटी आरक्षण में बंटवारे के अधिकार को राज्यों को सौपने को असंवैधानिक करार दिया था। पांच जजों की उस पीठ ने कहा था कि राज्यों को एससी-एसटी के आरक्षण में बंटवारा करने का कोई अधिकार नहीं हैं।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी 2010 में यही फैसला दिया था। जिसमें कहा गया था कि राज्यों को एससी-एसटी आरक्षण में बंटवारा करने का कोई अधिकार नहीं है।
अब सात जजों की सुप्रीमकोर्ट की पीठ ने 6 जजों के बहुमत से इस फैसले को पलट दिया है और राज्यों को एससी-एसटी आरक्षण में बंटवारे का अधिकार दे दिया है। इस पीठ की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश वाई. वी. चंद्रचूड़ कर रहे थे।
आज तक कभी केंद्र की सरकार और संसद ने एससी-एसटी आरक्षण और उनको मिले विशेषाधिकारों में हस्तक्षेप नहीं किया था।
सुप्रीमकोर्ट ने संविधान सभा की सहमति से बनी एससी-एसटी की विशेष संवैधानिक और कानूनी स्थिति को उलट दिया है। एससी–एसटी समुदाय को राज्यों के राजनीति और राजनीतिक दलों पर निर्भर बना दिया है।डॉ.बाबा साहेब आंबेडकर ने साफ तौर कहा था कि एससी-एसटी समुदाय इस देश का सबसे वंचित और ऐतिहासिक तौर पर नाइंसाफी का शिकार समुदाय है। सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक तौर पर सबसे कमजोर समुदाय है। उसे उसे इस या उस सरकार ( कार्यपालिका) के इच्छा के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। उसके लिए जो विशेष उपाय किए गए हैं, उसे संवैधानिक गारंटी दी जानी जरूरी है। इस संवैधानिक गारंटी के तहत उससे जुड़े विशेष मामलों जैसे, एससी-एसटी की सूची, उसमें परिवर्तन,एससी-एसटी को मिले आरक्षण और उसमें परिवर्तन, एसटी को अनुसूची 5 और 6 के तहत मिले विशेष आधिकारों को केंद्र या राज्यों की कार्यपालिका ( सरकारों) के भरोस ने नहीं छोड़ा गया। इसी के चलते संविधान में यह प्रावधान किया गया कि एससी-एसटी के हितों से जुड़े इन मामलों में संसोधन और परिवर्तन का अधिकार सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रपति के पास है। उनके माध्यम से संसद ही इसमें कोई संसोधन और परिवर्तन कर सकती है।इसके दार्शनिक, वैचारिक, राजनीतिक और जनसंख्याकि कारण क्या थे, इस पर विस्तार से बाद में। इन मामलों पर डॉ. आंबेडकर ने विस्तार से अपनी बात रखी है। संविधान सभा में भी इस विमर्श हुआ था।