अमानवीय जाति भेदभाव ब्राह्मणी वैदिक संस्कृति व्यवस्था प्रतिक्रांतिकात्मक क्रांति थी,मनुस्मृति दहन।

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अमानवीय जाति भेदभाव ब्राह्मणी वैदिक संस्कृति  व्यवस्था प्रतिक्रांतिकात्मक क्रांति थी, मनुस्मृति दहन।

25 दिसम्बर क्रिसमस डे ईसाईयों का बड़ा दिन ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में मनाया जाने वाला पर्व है। वही पर मनुस्मृति दहन का दिन है।25 दिसंबर 1927 को ब्राहमणी वैदिक कानून में ब्राह्मणो को श्रेष्ठ उच्च अन्य महिला और पुरुष को शुद्र को सेवा करने वाली अमानवीय जाति भेदभाव व्यवस्था के विरोध में मनुस्मृति की किताब को जलाया गया था। मनुस्मृति वैदिक ब्राहम्णी हिन्दुधर्म का धर्म शास्त्र कानून (विधी) है। जिसमें  चातुरवर्णीय व्यवस्था थी जिसमें ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र था, ब्राह्मण को श्रेष्ठ और भगवान का अवतार माना जाता था, ब्राह्मण शिक्षा, क्षत्रिय लड़ने के लिए हथियारों रखने और वैश्य को व्यापार करने का अधिकार था, शुद्रो को तीनों वर्ण वर्गों की सेवा करने का अधिकार था। अछुतों सामाजिक बहिष्कृत समाज था गले मटका और कमर में झाड़ू रहती थी। इनकी परछाई से अपवित्र होने के भय से ब्राह्मण दुर रहता था,अपवित्र थी। और महिलाओं को शिक्षा को ग्रहण करने का अधिकार नही  था। घर में चुल्हा चौके तक सिमित पति की सेवा करने भोग-विलास की वस्तु थी। ब्राह्मण के लिए जघन्य  अपराध पर भी कठोर दण्ड नहीं था। लेकिन शुद्र छोटी गलती पर कठोर दण्ड का प्रावधान था।सती,बाल-विवाह, भगवान के नाम पर देवदासी प्रथा थी।पति मरने पर महिला पुनः विवाह नहीं कर सकती थी। महिलाओं को किसी प्रकार की स्वतंत्रता नहीं थी बचपन में बाप विवाह के बाद पति और पति के मृत्यु पर भाई और पिता के अधिन और पिता के जायजाद में कोई हिस्सेदारी नही होती थी।25 दिसम्बर क्रिसमस डे ईसाईयों का बड़ा दिन ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में मनाया जाने वाला पर्व है। वही पर मनुस्मृति दहन का दिन है।25 दिसंबर 1927 को ब्राहमणी वैदिक कानून में ब्राह्मणो को श्रेष्ठ उच्च अन्य महिला और पुरुष को शुद्र को सेवा करने वाली अमानवीय जाति भेदभाव व्यवस्था के विरोध में मनुस्मृति की किताब को जलाया गया था। मनुस्मृति वैदिक ब्राहम्णी हिन्दुधर्म का धर्म शास्त्र कानून (विधी) है। जिसने वर्ण व्यवस्था और जातियों विभाजित किया।ब्राह्मण शिक्षित हो सकता था लेकिन शुद्र और महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा गया था।जघन्य अपराध पर भी कठोर दण्ड नही है लेकिन शुद्र छोटी गलती पर कठोर दण्ड का प्रावधान था।सती,बाल-विवाह, भगवान के नाम पर देवदासी प्रथा थी।पति मरने पर महिला पुनः विवाह नहीं कर सकती थी। महिलाओं को किसी प्रकार की स्वतंत्रता नहीं थी बचपन में बाप विवाह के बाद पति और पति के मृत्यु पर भाई और पिता के अधिन और पिता के जायजाद में कोई हिस्सेदारी नही होती थी।

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