
बाबा साहेब के नाम पर उनके विचारो को अपने अनुसार प्रचारित करने का नुकसान आने वाली पीढ़ियों को भुगतना होगा,
बाबा साहेब के नाम पर उनके विचारो को अपने अनुसार प्रचारित करने का नुकसान आने वाली पीढ़ियों को भुगतना होगा।
भारत में आम लोकसभा चुनाव चल रहे है और चुनाव मतदान का पहला चरण समाप्त होकर दुसरे चरण का मतदान चल रहा है। पहले चरण में मतदान का प्रतिशत कम रहा है। मतदान कम होने से मतदाताओं की नाराजगी दिखाई देता है। दुसरे चरण में भी मतदान प्रतिशत बढ़ने की अपेक्षा कम हुआ है मतदाताओं की मतदान के प्रति नाराजगी दिखाई दी है लेकिन मतदान के दौरान भी ईवीएम मशीन का विरोध बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग कम नही है। सुप्रीम कोर्ट से वीवीपेट पर्चियों की गिनती की याचिका को खारिज का फैसला चुनाव की निष्पक्षता और पारदर्शिता में संशय की स्थिति बनती है। बाबा साहेब के नाम पर उनके विचारो को अपने अनुसार प्रचारित करने का नुकसान आने वाली पीढ़ियों को भुगतना होगा,क्योंकि हमे हमारे आदर्श बाबा साहेब की बात को स्वीकार करना था,जो नहीं करते हैं।
लकड़ी के गट्ठर में से एक-एक लकड़ी किसान ने अपने बेटों को तोड़ने के लिए दिया तो सबने तोड़ दी,लेकिन जब उन लकड़ियों को एक गट्ठर में बांध कर उसने अपने बेटों को दिया तो कोई नहीं तोड़ पाया, तब किसान ने कहा एकजुट रहोगे तो तुम्हे कोई नहीं तोड़ सकता तुम्हे कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता । कहानी छोटी है लेकिन बताती है कि एकता जरूरी है ।
ठीक इसी प्रकार की हालत बहुजन कहने वाले लोगो की भी जिनके नाम पर लाखों संगठन और अनेकों राजनीतिक पार्टियां बनी हुई है । और इस स्थिति में वो अपने बिखरे समाज को बांटने का कार्य स्वयं खुद करते है,और दोषारोपण उसका जनता पर डाल देते है ।जो वास्तव में सत्य नहीं है । आज बाटने का कार्य अनेकों संगठन और अनेकों राजनीतिक दल बनाने वालों ने किया और ये बनते भी तब है,जब अपने घर मे रहने वाले लोगो की समस्या घर का मुखिया सुनता नही है ।* अपने घर को मजबूत बनाने के लिए अपने घर की समस्याओं को सुनना और उसका निपटारा करने के लिए आपको उचित रूप से न्याय दिखाते हुए निर्णय लेना होता है । घर को बनाने की जिम्मेदारी मुखिया की होती है,क्योंकि अपने घर मे संस्कार देने की जिम्मेदारी मुखिया की होती है और मुखिया जैसे संस्कारो को देने का प्रयास करेगा फसल भी उसको वैसी मिलेगी ।
डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर कहते है कि शिक्षित बनो,संगठित रहो,सँघर्ष करो, लेकिन आज हम इस बात को नहीं समझ पाए । इसका कारण हमें समझ आता है,की हम शिक्षित तो हुए लेकिन संगठित नहीं हुए और सगठित न होने का कारण भी बाबा साहेब ने बताया जिसका सन्दर्भ उनकी लिखी पुस्तक में उन्होंने बहुत ही सुंदर शब्दो मे दिया । *असंगठित समाज के समक्ष सबसे बड़ा खतरा ये होता है,की वो भिन्न-भिन्न जीवन आदर्शों और भिन्न-भिन्न जीवन मापदंडों के अनुसार जीवन जीता है । यही असंगठित समाज के समक्ष सबसे बड़ा खतरा होता है ।* आज जिस समाज का लोग हिस्सा है,वो असंगठित समाज का हिस्सा है । जिसका परिणाम ये है कि सबने लाखो संगठनों का निर्माण किया अपनी-अपनी जातीयो के नाम से और अनेक राजनीतिक पार्टियों का निर्माण किया । आज उसी का परिणाम है कि असंगठित समाज ने अपना एक जीवन आदर्श नहीं चुना और न ही अपने जीवन जीने के तरीके को एक जैसा बनाया और जब तक ये रहेगा तब तक वो असंगठित समाज का ही एक हिस्सा बनकर रहेंगे और उसमे एक-दूसरे की कमियों को निकालने में समय अपना खराब करते है,तो फिर वो संगठित होंगे कैसे, और कब होंगे ? क्योंकि कारण जो है उनका इलाज वो स्वयं नहीं लेना चाहते है ।
जब सभी लोग डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर का नाम लेते है,तब डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर जी के अथक संघर्षों के परिणाम के बाद मिली सुविधा तो उनका याद है,क्योंकि उनको वो सुविधा चाहिए, लेकिन डॉ बाबा साहेब ने अंबेडकर ने इसके अलावा और कुछ जो दिया या बताया वो सुविधाओं के चक्कर मे अस्वीकार क्यों करते है ? डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर ने अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं किया और ना ही हमे स्वाभिमान से समझौता करने को कहा तब फिर हम डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर की इस बात को क्यों नहीं मानते ? क्या हम उंनको एक आदर्श के रूप में पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं कर पाए, इसीलिए आज हम उसे व्यवहारिक रूप से वैसे नहीं स्वीकार कर पाए जैसा कि हमारे आदर्श ने उसे व्यवहारिक रूप से स्वीकार किया । एक आदर्श को चुनने के लिए आपको उसके व्यवहारिक होने का अध्यन अवश्य करना चाहिए अगर हम ऐसा नहीं करते है,तब हम उसी अनुरूप अपने को नहीं बना पाते है,और इसीलिए कथनी और करनी में अंतर होने लगता है ।
जातीयो के समूल विनाश की बात हमारे आदर्श डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर चाहते थे,और उसके लिए उन्होंने आजीवन प्रयास किया । *जब वो अपनी पुस्तक जाती का समूल विनाश में लिखते है कि जब में बदल जाऊंगा तो आप लोगो के बीच का नहीं रहूंगा ।* तब आज जातिव्यवस्था में रहने वाले लोग उंनको किस आधार पर जातीयो में बांधे रखने का कार्य करते है । *डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर ने जातीयो को राष्ट्रविरोधी कहा तो जातीयो को बनाये रखने का कार्य मजबूती से क्यों लोग कर रहे है ?*
जो लोग कहते है कि जातीयो का अंत नहीं किया जा सकता है,तो उन लोगो को बाबा साहेब की धम्म दीक्षा के उपरान्त 15 अक्टूबर 1956 का भाषण अवश्य पढ़ना चाहिए कि जातीयो का समूल विनाश का मार्ग बाबा साहेब ने दिया और उसमे कहा कि अछूत बनकर नहीं घूमना है । लेकिन डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर को अपना आदर्श मानने वाले लोग बताये की बाबा साहेब के विचारों की हत्या करके उस मार्ग में भी जातीयो का निर्माण उन्होंने क्यों किया ? जब बाबा साहेब अम्बेडकर ने गहनता से सभी धर्मो का अध्यन किया और एक ऐसे धर्म को उन्होंने चुना जो सभी को समानता,स्वतंत्रता,भाईचारा और न्याय प्रदान करता है । तब उस मार्ग में भी अपनी सुविधाओं को पाने मात्र के लिए उन्होंने बाबा साहेब के विचारों की हत्या करके उसमे भी जातीयो का निर्माण करने का कार्य किया । तो क्या हम बाबा साहेब के विचारो के समर्थक है या फिर बाबा साहेब के विचारो के हत्यारे ये सोचने का विषय है,और बाबा साहेब के अनुयायियों को इस पर मंथन करना होगा कि उन्हें बाबा साहेब के विचार उसी रूप में चाहिए जैसे उन्होंने दिए या बाबा साहेब के विचारों में अपनी सुविधाओं की मिलावट वाले विचार,जो बाबा साहेब के विचारो को विकृत करते है । क्या बाबा साहेब होते तो इसका समर्थन करते ? अगर नहीं तो जो आज बाबा साहेब के नाम पर उनके अनुयायी होने की बात करते है,तो उन्हें जवाब देना चाहिए कि वो मिलावट जो आज वो कर रहे है,वो तो बाबा साहेब के लिए बड़ा आसान था,लेकिन बाबा साहेब ने ऐसा नहीं किया और बाबा साहेब के विचारो की हत्या करने वाले कैसे बाबा साहेब के अनुयायी हो सकते है ? इस बात को गहनता से सोचना होगा ।