
*धर्म और धम्म*धर्म एक संवैधानिक शब्द है।धम्म एक शिक्षा है ।
धर्म और धम्म*धर्म एक संवैधानिक शब्द है।धम्म एक शिक्षा।
शब्द संस्कृत का है जिसका अर्थ है *धारण करना*धर्म
यानी क़ी आवरण ओढ़ लेना। जिसकी कोई निश्चित पहचान होती है। जिसे व्यक्ति अपने जीवनभर धारण किया होता है। उन विशेषता वाले लोगो की पहचान का नाम ही धर्म है।
धर्म यानी कोई विशेष समुदाय/सम्प्रदाय वाले लोग। जिसे भारतीय संविधान के तहत अधिकार प्राप्त होते है। धर्म एक संवैधानिक शब्द है।
लेकिन धम्म धर्म नहीं है।
धम्म पाली भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ज्ञान/शिक्षा/Teaching
धम्म कोई समुदाय विशेष नहीं है। यह सभी मानव के लिए है। चाहे वो कोई भी सम्प्रदाय/समाज/पंथ का हो।
इसलिए आप देख सकते है कोई भी हिन्दू धर्मीय बुद्ध के धम्म का पालन करता है, लेकिन वह बौद्ध धर्म का नहीं होता।
सम्राट अशोक ने बुद्ध धम्म का प्रचार प्रसार किया। बौद्ध धर्म का नहीं। क्योंकि सम्राट अशोक ने बौद्धों का कोई समाज/सम्प्रदाय नहीं बनाया था।
आधुनिक भारत में डॉ. बाबा साहेब ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने भारत में बौध्द धर्म की स्थापना की यानी बौद्धों का एक समुदाय/समाज/सम्प्रदाय का निर्माण किया। जिसे धर्म के रूप में संविधान में मान्यता दी।
बौद्ध धर्म का व्यक्ति निश्चित बुद्ध धम्म का पालन करेगा। लेकिन कोई बुद्ध धम्म का पालन करता हो तो यह जरुरी नहीं की वो बौद्ध धर्मीय ही होगा। वो हिन्दू धर्म का या कोई अन्य धर्म का भी हो सकता है।
इसलिये आप धर्म और धम्म को एक नहीं करे ना ही समझे।
धर्म एक संवैधानिक मामला है और धम्म एक शिक्षा का मामला है।
इसीलिये गांधीवादी लोग बुद्ध धम्म अपनाने पर जोर देते है। जिसके लिए केवल दीक्षा लेना ही काफी है।
लेकिन डॉ. बाबा साहेब धर्म परिवर्तन करने पर जोर देते है।जिसमे दीक्षा लेने के साथ साथ कानूनी /संवैधानिक प्रक्रिया का भी पालन करना होता है।
इसलिए सच्चे आम्बेडकरवादि लोगो को सामाजिक जीवन में बौद्ध धर्म शब्द पर जोर देना चाहिए। लेकिन अपने व्यक्तिगत जीवन के लिए बुद्ध धम्म पर ध्यान देना चाहये।