आरक्षित सीटों से खड़े होने वाले प्रत्याशी आदिवासी दलित शोषित पीड़ितश समाज के नही है वे मनुवादी राजनीति दल के लोग ….. हैं ? दलबधलु दलाल चम्मचे प्रत्याशियों से सावधान रहें।

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आरक्षित सीटों से खड़े होने वाले प्रत्याशी आदिवासी दलित शोषित पीड़ित समाज के नही है वे मनुवादी राजनीति दल के लोग ….. हैं ?

दलबधलु दलाल चम्मचे प्रत्याशियों से सावधान रहें।

स्वqतंत्रता के बाद देश में बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा लिखित संविधान लागू होकर लोकतंत्र की स्थापना हुई देश का राजा मां के पेट से पैदा न होकर मतपेटी से होने लगा। अर्थात लोकतंत्र में लोकप्रतिनिधित्व शासन लागू हुआ। यह विदित हो कि भारत में हिन्दु जाति वर्ण सामाजिक व्यवस्था के कारण ऊॅच-नीच भेदभाव की सोच कायम है। आये दिन दलित छोटी जाति के लोगों के दुल्हे को घोड़े में बैठे कर चलने  नही देना,मुछे रखने अच्छे कपड़े पहने, मंदिर में प्रवेश पर मारपीट करना, ग्राम पंचायत की बैठको से उठाकर भगा देना तिरंगा फहराने नही देना आदि आदि अत्याचार की घटनाएं घटती और सुनने को मिलती है।स्वतंत्रता के पुर्व पढ़ने का अधिकार नही था,सार्वजनिक जगहों से पानी को छुने अधिकार नहीं था,शरीर की छाया से भी नफरत थी ऊंच जाति के लोग अपवित्र हो जाते,बहुत जिल्लत भरा समय था। दलितों के मसीहा मानवतावादी डॉ बाबासाहेब आंबेडकर को यह चिंता थी कि स्वतंत्रता के बाद मेरे शोषित पीड़ित दलित समाज को हिन्दु सामाजिक भेदभाव व्यवस्था से छुटकारा मिलने वाला नही है ये विकास के मुख्य धारा में कैसे आयेंगे, मौलिक अधिकार कैसे बनेंगे। डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने गोलमेज सम्मेलन में पृथक निर्वाचन का अधिकार का प्रस्ताव पास होकर अंग्रेजी मैकडोनाल्ड सरकार से मिल गया था।पृथक निर्वाचन में अछुत दलित समाज के उम्मीदवार को अछुत दलित के लोग ही वोटिंग करेंगे, विशेष तौर से अपने तरीके से उम्मीदवार चुनने का अधिकार मिला था।जिस अधिकार का विरोध गांधी एंड पार्टी ने यह कहते हुए किया कि इससे हिन्दुओं में अलगाव पैदा होगा हिन्दुओं लोग टुकड़े टुकड़ों में बट जायेंगे।पुना के येवरदा सेन्ट्रल जेल अनशन में बैठकर डॉ बाबासाहेब आंबेडकर को पुणा समझते पर हस्ताक्षर कर पृथक निर्वाचन को छोड़ कर आरक्षण सीट पर सभी को मतदान करने के अधिकार को मानना पड़ा और आज शोषित पीड़ित अछुत दलित समाज दलाल चमच्चो को वोटिंग और प्रतिनिधि चुनने को मजबुर होना पड़ रहा है। सामान्य मनुवादी राजनीति पार्टी को आरक्षित सीटों के लिए शोषित पीड़ित अछुत दलित समाज में स्वार्थी मतलबी लोगों की कमी नही है। फायदा आरक्षण का भरपूर उठायेंगे और मनुवादी पार्टियों अपना भविष्य तलाशेंगे।आरक्षित में खड़े होने वाले आदिवासी दलित प्रत्याशी आदिवासी दलित शोषित पीड़ित समाज के नही है वे मनुवादी राजनीति पार्टी के लोग ….. हैं ? लोकतंत्र के महापर्व पर मतदान जरूर करें, लेकिन सोच-समझकर करें। क्योंकि आजकल दलों को तोड़ने फोड़ने की राजनीति चल रही है, नेता  दल बदल रहे है। हम अच्छा प्रत्सयाशी मझकर वोटिंग करते हैं। वहीं दगा देकर स्वार्थ में दल बदल इधर से उधर चले जाते हैं। 

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