अपनो से मिलने पहुंचे संस्था के पदाधिकारी नम आंखों से लगाया गले, किया स्वागत

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अपनो से मिलने पहुंचे संस्था के पदाधिकारी

नम आंखों से लगाया गले, किया स्वागत

बैतूल। बीते समय एक फिल्म आई थी लावारिस। उसका एक गाना फेमस हुआ था ” कब के बिछड़े हुए हम आज कहां आ के मिले”। ये गीत चरित्रार्थ हुआ बैतूल जिले के  घोड़ाडोंगरी में 1990 में शुरू हुई संस्था वीसा जिसे बाद में श्रब के नाम से जाना गया। संस्था के कार्यकर्ताओं एवं ग्रामीणों के साथ मुलाकात की गई।
संस्था से जुड़े संजय गुप्ता, राजकुमार, निशा खान, रामा अतुलकर, गोपाल शर्मा, तेजी नागले की टीम ने घोड़ाडोंगरी के गांवों दूधावानी, कोयलारी, फुलगोहान आदि गांवों का लगभग 25 वर्ष बाद भ्रमण किया ओर बदलावों का जायजा लिया। 
संजय गुप्ता जिनकी अगुवाई में ये मिलन हुआ, भावुक होकर बताते हैं। पंतनगर विश्वविद्यालय से 1992 में कृषि अभियांत्रिकी की पढ़ाई के बाद घोड़ाडोंगरी से संस्था के तत्कालीन निदेशक व उपनिदेशक गिरीश भारद्वाज व वीके प्रसाद विश्वविद्यालय आय ओर 40 छात्रों के बैच से मुझे चुना। रुड़की, हरिद्वार से पले बढ़े छात्र के लिए घोड़ाडोंगरी में जीवन के पहले कार्य को करना एक बड़ा निर्णय था। पर जब यहां पहुंचा तो ग्रामवासियों ओर से संस्था के साथियों के स्नेह ने दिल जीत लिया। अपने कार्यकाल में लगभग 4 पक्के और 50 से अधिक मृदा चेक डैम और कई सौ एकड़ में मेढ़ बंधी करवाई। 
राजकुमार तेवतिया ने बताया कि वो गाजियाबाद उत्तरप्रदेश के निवासी थे ओर अपने जीजाजी के पास आए थे। उन्होंने घोड़ाडोंगरी में एक जॉब के बारे में बताया। सामाजिक क्षेत्र की लगन, और कृषक परिवार से जुड़ा होना राजकुमार का बड़ा अनुभव सिद्ध हुआ। उन्होंने प्रसाद जी के मार्गनिर्देशन में लगभग 26 गावों में स्थानीय कृषि में आमूलचूल परिवर्तन किए। गेहूं, चना, मशरूम आदि की पैदावार सिखाईं। 
निशा खातून बैतूल से जुड़ी है। आज से लगभग 32 साल पहले निशा ने दूधावानी को अपने निवास के रूप में चुना और ग्रामवासियों के साथ रहकर उनकी समस्याओं को करीब से जाना। निशा की मिलनसारी का आलम ये रहा कि इस भ्रमण के दौरान उन्हें दुधवानी के ग्राम वासियों ने सर पर बैठा लिया और पूरा गांव घुमाया। टीम ने पुराने कार्यों को उपयोग में पाया। ग्रामवासियों ने भोजन कराया, तो भ्रमणकारी टीम ने उनके बच्चों को उपहार दिए।
घोड़ाडोंगरी में मथुरा से आकर बसे गोपाल शर्मा याद करते हैं कि मै यहां अपने बड़े भाई डॉ विजय कुमार शर्मा से मिलने आया था तो उन्होंने मुझे संस्था के बारे में बताया। मैंने इंटरव्यू दिया तो एकाउंटेंट के पद पे मुझे नौकरी मिली। भले ही मैं अकाउंटेंट था, पर संस्था के नियम के अनुसार मुझे हर गांव में जाना अनिवार्य था।
डॉ शर्मा ने संस्था के लिए मेडिकल कैंप लगाकर उस जमाने में अपनी महत्वपूर्ण सेवाएं दे चुके है। जिन्हें आज भी ग्रामीण उनकी सेवा भाव को याद करते है।
भ्रमणकारी टीम ने तब संस्था में कार्यरत रमेश बेले  वर्तमान में जनपद बैतूल में कार्यरत से वीडियो काल पर बात की तो उन्होंने भी बताया कि घोड़ाडोंगरी में व्यवसायिक कार्य जीवन की शुरुआत हुई, ओर उन्हें गर्व है जमीनी सीख को उन्होंने अपने कार्यकाल में कई गांवों में मूर्तरूप दिया। 
संजय गुप्ता जो की वर्तमान में दिल्ली स्थित सामाजिक संस्था चेतना के फाउंडर डायरेक्टर है कहते हैं “हमारा उद्देश्य उस समय किए गए हमारे कार्यों, ओर 30 साल में गावों में हुए विकास को देखना था। हमे खुशी है कि जहां एक ओर प्रत्येक गांव में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत बनी सड़क, नई शिक्षा नीति के अनुरूप बने प्राथमिक विद्यालय, घर घर में बिजली, नल का पानी, टेलीफोन, इंटरनेट आदि पहुंचा है, वहीं दूसरी ओर ग्राम वासियों ने अपनी संस्कृति को पूर्ण रूप से संजो के रखा है। 
ग्रामवासियों ने निशा और राजकुमार, गिरीश भारद्वाज, वीके प्रसाद, प्रमोद, सुचिता स्वरूप, मर्सी, प्रदीप वाघमारे, विनोद चौधरी, मनजीत, बाला, जया, रज्जन, स्तुति स्वरूप, अजीत, विनोद, ज्ञानेंद्र, विनय सालोमन, आदि को याद कर आभार प्रकट किया। 
रामा अतुलकर ने स्थानीय लोगों की ओर से भ्रमणकारी टीम को धन्यवाद दिया ओर साथ ही आश्वासन दिया है कि यदि भविष्य में कोई संस्था घोड़ाडोंगरी के ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए आगे आती है तो उसका पूरा सहयोग करेंगे।
हालांकि संस्था टीम ने बताया कि सरकार की दो बड़ी स्कीम उज्ज्वला ओर स्वच्छ भारत मिशन का उतना असर नहीं दिखा। आज भी गांवो में पारंपरिक रूप से  चूल्हों पर भोजन बनते हुए देखा गया है, साथ ही घरों में चालू टॉयलेट नहीं मिले।
ग्रामीणों ने संस्था कार्यकर्ताओं की ग्रामों में चहलकदमी को देखते हुए लगा कि शायद अब संस्था वापस आएगी जिससे हमें रोजगार मिलेगा। ग्रामवासियों ने नम आंखों से एवं गले लगाकर सभी का अभिवादन किया।
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