
वक्फ संशोधन एक्ट 2025 का विरोध और कानूनी चर्चाएं तेज हो चुकी है लेकिन मध्यप्रदेश में चुप्पी क्यूं?
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वक्फ संशोधन एक्ट 2025 का विरोध और कानूनी चर्चाएं तेज हो चुकी है लेकिन मध्यप्रदेश में चुप्पी क्यूं?
भोपाल| 2 जून 2025वक़्फ़ संशोधन एक्ट 2025 को लेकर देशभर में बहस,विरोध और कानूनी चर्चाएं तेज़ हो चुकी हैं। कई राज्यों में मुस्लिम समाज,सामाजिक संगठन और धार्मिक संस्थाएं इस विवादित कानून के खिलाफ सड़कों पर उतर चुकी हैं। दिल्ली,उत्तर प्रदेश,महाराष्ट्र, केरल, बंगाल और कर्नाटक जैसे राज्यों में वक़्फ़ संपत्तियों की रक्षा को लेकर आंदोलन की लहर है। लेकिन इस सबके बीच मध्य प्रदेश खासकर भोपाल की खामोशी हर किसी को चौंका रही है।
*वक़्फ़ संपत्तियाँ और संशोधन एक्ट: क्या है मुद्दा?*
वक़्फ़ संपत्तियाँ वो धार्मिक और सार्वजनिक हित की जमीनें होती हैं जिन्हें समाज ने मस्जिदों, कब्रिस्तानों,मदरसों,यतीमख़ानों या ग़रीबों की मदद के लिए वक़्फ़ किया होता है।वक़्फ़ संशोधन एक्ट 2025 के अंतर्गत इन संपत्तियों की निगरानी और सरकारी हस्तक्षेप के कुछ नए प्रावधान लाए गए हैं। विशेषज्ञों और धार्मिक संगठनों का कहना है कि इससे वक़्फ़ बोर्ड की स्वायत्तता कम होगी और सरकारी नियंत्रण बढ़ेगा।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कई राष्ट्रीय संगठन इस एक्ट को मुसलमानों की धार्मिक और सामाजिक आज़ादी पर हस्तक्षेप मानते हुए विरोध कर रहे हैं।
*भोपाल में चुप्पी,जब देशभर में आवाज़ें बुलंद*
भोपाल,जिसे तहज़ीब,तालीम और राजनीतिक चेतना का मरकज़ माना जाता है,यहाँ इस कानून के खिलाफ न कोई बड़ा प्रदर्शन हुआ, न ही किसी बड़े धार्मिक या सियासी नेतृत्व ने ज़ोरदार प्रतिक्रिया दी है। जबकि प्रदेश में हज़ारों करोड़ की वक़्फ़ संपत्तियाँ मौजूद हैं।
*यह चुप्पी कई सवाल उठाती है:*
• क्या मध्य प्रदेश के मुसलमान डर या असमंजस में हैं?
• क्या धार्मिक और राजनीतिक नेतृत्व अब कौमी मुद्दों से दूरी बना चुका है?
• या फिर अंदरूनी सियासी मतभेद इस मुद्दे को आगे नहीं बढ़ने दे रहे?
*नेतृत्व की भूमिका पर उठते सवाल*
प्रदेश के कई वरिष्ठ उलेमा, मौलवी, समाजसेवी और सियासी चेहरे इस मुद्दे पर अब तक चुप हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस कानून का असर सीधे तौर पर मज़हबी इदारों,कब्रिस्तानों और गरीबों की मदद से जुड़ी व्यवस्था पर पड़ेगा,लेकिन ज़िम्मेदार तबका इस पर प्रतिक्रिया देने से बच रहा है।
RH NEWS 24 से बातचीत में एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा:
> “लोग अपने निजी फायदे और सियासी रिश्तों के चलते चुप हैं। अगर यही रवैया रहा, तो वक़्फ़ संपत्तियों का वजूद ही खतरे में पड़ जाएगा।”
*अवाम की बेचैनी और नेतृत्व की गैरमौजूदगी*
भोपाल सहित प्रदेश के कई मुस्लिम बहुल इलाकों में अब धीरे-धीरे अवाम के बीच बेचैनी बढ़ रही है। लोगों को समझ नहीं आ रहा कि जब उनके अपने रहनुमा ही बोलने से कतरा रहे हैं, तो उनकी आवाज़ कौन बनेगा?
*भोपाल निवासी एक युवा छात्र ने बताया:*
> “हमने हमेशा अपने रहनुमाओं से उम्मीद रखी थी कि वो ऐसे मौकों पर आगे आएंगे। लेकिन इस बार सन्नाटा है, और वह सबसे ज़्यादा डरावना है।“
*अगला कदम क्या?*
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन, ज्ञापन और कानूनी कार्रवाई जैसे विकल्प सुझाए हैं। लेकिन इन निर्देशों को मध्य प्रदेश में लागू होते देखना अभी
बाकी है।
*अब ज़रूरत है कि:*
समाज के ज़िम्मेदार लोग आगे आएं
जनता को जागरूक किया जाए
वक़्फ़ संपत्तियों की हिफाज़त के लिए कानूनी विकल्प अपनाए जाएं।
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