डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के मानवीय नैतिक वैचारिक क्रांति – समानता आधारित शासन शासक बनाने लक्ष्य होना चाहिए।
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के मानवीय नैतिक वैचारिक क्रांति- समानता आधारित शासन शासक बनना लक्ष्य होना चाहिए।
महामानव तथागत भगवान गौतम बुद्ध ने अपने उपासकों से कभी नही कहा कि विपश्यना ध्यान साधना करो, तथागत बुद्ध ने सद्धर्म पंचशील,अष्टागणी का अपनाने शीलवान सदाचारी बनने के लिए कहा।विपश्यना ध्यान साधना चित को एकाग्र करने लिए मन को शुद्ध करने के लिए है।समाधी मन को एकाग्र कुशल कर्मो के लिए प्रेरित करता है।समाधी से शांति और ज्ञान प्राप्त होता है। डॉ बीआर अंबेडकर बाबा साहेब इंग्लैंड में 18-18 घंटे उपवास और रोटी के टुकड़े खाकर शिक्षा अध्ययन किया, विश्व के विद्वान सबसे ज्यादा पढ़ें लिखे शिक्षित डिग्रीधारी व्यक्ति अपने दम और साहस से बने। डॉ बीआर अंबेडकर शिक्षा के प्रतिक बने हुए हैं।यदि मन को एकाग्र कुशल कर्मो और आंतरिक शांति के लिए विपश्यना ध्यान साधना करें होते तो कोई बुद्ध संत साधू बने हुए होते। देश का संविधान रचिता नही होते ना ही बहुजन समाज को 3600 सालों की गुलामी से आजादी नही मिलती, मनुस्मृति की समाज व्यवस्था में जाति-धर्म शास्त्रो वेदों के कानूनों के नाम पर शोषण होता रहता। डॉ बीआर अंबेडकर बाबा साहेब के लिखित संविधान के कारण स्वतंत्रता से सांस ले रहा है नैतिक वैचारिक क्रांति के कारण हम स्वाभिमानी वीर योद्धा है। डॉ बीआर अंबेडकर बाबा साहेब ने बौद्ध धर्म स्वतंत्रता स्वाभिमान समानता कल्याण अंधविश्वास परम्परा पाखंडवाद से छूटकारा के लिए अपनाने के लिए कहा। डॉ बीआर अंबेडकर बाबा साहेब का अंतिम लक्ष्य था जातिवाद को जड़ से समाप्त करना और देश की मुल बहुजन समाज को शासनकर्ता बना था। ज्यादातर लोग सुख सुविधाओं स्वार्थ में डुबे हुए है मानवीयता और नैतिकता मिशन वाला कारवां बड़ी मुश्किलों मेहनत संघर्ष यहां तक आया है आगे नही ले जा सकते तो पीछे जाने नही देना चाहिए।विपश्यना ध्यान साधना मन को एकाग्र करने के लिए अच्छा है। मानवीय पीड़ा को जानने के लिए आतंरिक शांति के लिए विपश्यना ध्यान साधना करना चाहिए। विपश्यना ध्यान साधना से मात्र व्यक्तिगत लाभ के लिए है। और विपश्यना ध्यान साधना करने वाले धम्म का कितना पालन करते है।डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के मानवीय नैतिक क्रांति वैचारिक मिशन को ठंडा करने का षंडयंत्र है।बीआर अंबेडकर बाबा साहेब ने स्वाभिमान स्वतंत्रता और सम्मान के लिए 1956 को पुराने हिन्दू धर्म ढर्रे को त्यागकर बौद्ध धर्म को अपनाने ऐलान किया था। जिसे देखते हुए दलित महार समाज के लोग बौद्ध धर्म की ओर आ रहे है लेकिन बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा दिये गये बाईस प्रतिज्ञा अपना नही रहे है।ना ही पंचशील,आष्टागिक मार्ग का पालन करते है। जीवन के क्षेत्र में ज्ञान उपलब्ध है मात्र ज्ञान को गहराई से अध्ययन और जानने की आवश्यकता है। समाज में बहुत सारे समाज सुधारक हुए जिन्होंने विपश्यना बिना किये समाज के लिए काम किया। लेकिन डॉ बीआर अंबेडकर बाबा साहेब ने स्वाभिमान सम्मानजनक जीवन जीने अधिकार दिया है, किसी और ने नही संत समाज सुधारको के ईश्वरीय अमानवीय अंधविश्वास परम्परा पाखंडवाद विरोध किया है लेकिन धर्म जाति वेदों शास्त्रों के सामाजिक व्यवस्था की गुलामी से आजादी नहीं मिली।