शिक्षक पर एफआईआर नहीं, यह देश की चेतना पर मुकदमा है!

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“शिक्षक पर एफआईआर नहीं, यह देश की चेतना पर मुकदमा है!”

✍️ सत्यवीर सिंह, आईपीएस (से.नि.)

उप्र। जब किसी शिक्षक के नाम एफआईआर दर्ज होती है, असल में वह केवल एक व्यक्ति पर नहीं बल्कि पूरे समाज की सामूहिक बुद्धि पर दर्ज आरोप होता है। यह दृश्य सिर्फ एक शिक्षक को अपराधी बताने का नहीं, बल्कि उस चेतना को कटघरे में खड़ा करने का है जो हमें सवाल पूछना सिखाती है, सोचने की ताक़त देती है और भीड़ से अलग एक जागरूक नागरिक बनाती है। यह वही चेतना है जिससे हर सत्ताधारी डरता है, क्योंकि जागरूक जनता वादों की असलियत जानती है और सवाल पूछने का दुस्साहस करती है।उत्तर प्रदेश के उस शिक्षक ने अपने विद्यार्थियों से बस इतना कहा कि वे कांवड़ उठाने में समय बर्बाद न करें, बल्कि पढ़-लिखकर देश के लिए ज्ञान का दीप जलाएँ। उसने भांग और धतूरे की नशाखोरी से दूर रहकर शिक्षा के नशे को अपनाने की सीख दी। लेकिन सत्ता को यह बात नागवार गुज़री। उस पर एफआईआर कर दी गई, जैसे उसने कोई भयंकर षड्यंत्र कर दिया हो। लेकिन यह एफआईआर वास्तव में उस चेतना पर है जो विद्यार्थियों को भीड़ नहीं, नेतृत्व सिखाती है। यह हर उस माता-पिता की भी अपमानजनक निंदा है जो दिन-रात खून-पसीना बहाकर अपने बच्चों को पढ़ने भेजते हैं—ताकि वे डॉक्टर, वैज्ञानिक, जज, प्रशासक बनें, न कि किसी धार्मिक नशे में डूबी भीड़ का हिस्सा।अब सवाल उन धार्मिक संगठनों से है जिन्होंने शिक्षक पर एफआईआर की मांग उठाई। क्या वे सचमुच धर्म के रक्षक हैं या उस अंधकार के व्यापारी जो बच्चों के हाथ में कलम की जगह त्रिशूल देखना चाहते हैं? क्या शिक्षा विरोधी मानसिकता का खुला समर्थन करना धर्म की सेवा है या देश के भविष्य का गला घोंटना? क्या अब यही धर्म का नया पाठ है—जो शिक्षक तर्क की बात करे, उसे चुप करवा दो?इन संगठनों से बड़ा सवाल तो देश के करोड़ों माता-पिता से है—क्या आप अपने बच्चों को स्कूल और कॉलेज भेजते हैं ताकि वे सोचें, समझें और जीवन में आगे बढ़ें, या आप चाहते हैं कि वे इन मठों, जुलूसों और यात्राओं में शामिल होकर भजन-भांग और भीड़ का हिस्सा बनें? क्या आप सचमुच अपने सपनों से मुंह मोड़ चुके हैं?

धर्म का नशा सत्ता का सबसे पुराना हथियार रहा है। इतिहास गवाह है कि जिसने भी ज्ञान का दीप जलाया, उसकी लौ बुझाने की हर संभव कोशिश की गई। सुकरात, गैलीलियो, सावित्रीबाई फुले, डॉ. आम्बेडकर—इन सबके खिलाफ समाज की कट्टरता ने जहर, कैद, पत्थर और बहिष्कार का हथियार उठाया। और आज फिर वही खेल, नए पर्दे में चल रहा है।सरकार को नशे में डूबी, विचारशून्य पीढ़ी चाहिए जो सवाल न पूछे। इसलिए तर्क और विवेक को सज़ा मिलती है और धर्मांधता को संरक्षण। शिक्षित नागरिक जवाब मांगता है, और सत्ता को जवाबदेही पसंद नहीं—उसे सिर्फ भीड़ चाहिए जो जयकारे लगाए, सवाल न करे।

नेल्सन मंडेला ने कहा था—”शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे आप दुनिया बदल सकते हैं।” अगर हम इसी हथियार को तोड़ डालेंगे, तो आने वाली पीढ़ियाँ तर्क से विकलांग और अंधश्रद्धा से अतिपोषित होंगी।अब समय है जागने का। चुप्पी अब अपराध है। शिक्षक के साथ खड़े होना केवल एक व्यक्ति की रक्षा नहीं, बल्कि अपने ही बच्चों की संभावनाओं की रक्षा है। सड़कों से संसद तक आवाज़ उठाइए। सोशल मीडिया से लेकर अदालत तक, हर मंच पर यह सवाल रखिए कि जो समाज शिक्षकों को डराकर चुप कराना चाहता है, वो अपने बच्चों को कहाँ ले जा रहा है?

अगर आज हम चुप रहे, तो कल कोई और शिक्षक आपके बच्चों को वैज्ञानिक बनने का सपना दिखाने की हिम्मत नहीं करेगा। तब इतिहास हमें भी दोषी ठहराएगा, और यह देश एक विवेकहीन, अंधभक्त पीढ़ी की चिता पर रोशनी ढूंढता रह जाएगा।

 सोचिए। सवाल पूछिए। शिक्षक के पक्ष में खड़े हो जीइए। यही वक्त है, जब तय होगा कि भारत एक ज्ञान-प्रधान राष्ट्र बनेगा या भक्ति में डूबा हुआ भीड़तंत्र।

जागो S C. S T .OBC अभी भी नहीं जागे तो धर्म के ठेकेदार  जो  करना चाहते हैं वह अपने परिवार एवं बच्चों के साथ वही करेंगे जो पहले  हुआ करता था ईश्वर का  भए।

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