वक़्फ़ संशोधन एक्ट 2025: मध्य प्रदेश में खामोशी क्यों? ✍️ *मोहम्मद उवैस रहमानी*

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वक़्फ़ संशोधन एक्ट 2025: मध्य प्रदेश में खामोशी क्यों?

✍️ *मोहम्मद उवैस रहमानी* 9893476893/9424438791

वक़्फ़ संपत्तियों से जुड़ा *वक़्फ़ संशोधन एक्ट 2025* पूरे देश में चर्चा और चिंता का विषय बना हुआ है। कई राज्यों में इस संशोधन के विरोध में आंदोलन, प्रदर्शन और कानूनी सलाह-मशविरा ज़ोरों पर है। मगर जब बात *मध्य प्रदेश* की होती है, विशेषकर *भोपाल* जैसे ऐतिहासिक और जागरूक मुस्लिम बहुल क्षेत्र की, तो वहाँ की खामोशी चौंकाने वाली है। सवाल ये उठता है कि जिस प्रदेश की सरज़मीन पर वक़्फ़ की बड़ी जायदादें मौजूद हैं, वहाँ इस बिल के विरोध में आवाज़ें इतनी *धीमी और बेजान* क्यों हैं?

 *भोपाल की खामोशी: वजहें और सवाल* 

भोपाल को यूं तो तालीम, तहज़ीब और सियासत का मरकज़ माना जाता है। यहाँ के लोग ऐतिहासिक रूप से सामाजिक और सियासी आंदोलनों का हिस्सा रहे हैं। लेकिन *वक़्फ़ संशोधन एक्ट 2025* जैसे अहम मुद्दे पर सन्नाटा पसरा है।

 • क्या यहाँ के *मुसलमान डरे हुए हैं?* 

• क्या वे अपने *सियासी और सामाजिक रहनुमाओं* की तरफ टकटकी लगाए बैठे हैं?

• या फिर आला कमान के अंदरूनी मतभेद इस ख़ामोशी की वजह हैं?

इन सवालों के जवाब आज हर जागरूक शख्स ढूंढ रहा है।

*जिम्मेदारों की चुप्पी: नेतृत्व का संकट?* 

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि वक़्फ़ संपत्तियाँ मुसलमानों की एक *धार्मिक और सामाजिक विरासत हैं।* ये मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों और ग़रीबों की मदद के लिए वक़्फ़ की गई थीं। ऐसे में अगर इन संपत्तियों पर किसी भी तरह की सरकारी या कानूनी बंदिशें लगती हैं, तो ये पूरी *कौम के हक़ और भविष्य* से खिलवाड़ है।

*ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड* ने तो इस एक्ट के खिलाफ विरोध के तरीके भी बताए हैं – ज्ञापन देना, शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना, कानूनी विकल्प तलाशना। फिर मध्य प्रदेश के हज़ारों *मौलवी, उलेमा, बुद्धिजीवी, समाजसेवी और सियासी नेता* क्यों खामोश हैं?

क्या ये सभी अपने *व्यक्तिगत फायदे, दुकान, मकान, और कारोबार* तक सीमित हो गए हैं?

क्या इन्हें अब उम्मत और कौम की तकलीफ से कोई सरोकार नहीं?

 *अवाम की बेचैनी: उम्मीद और मायूसी के बीच* 

मध्य प्रदेश का मुसलमान इस वक्त *उलझन और मायूसी* के बीच फंसा हुआ है। उसे समझ नहीं आ रहा कि आखिर वह किसकी तरफ देखे – जब उसके अपने रहनुमा ही *बोलने से कतरा रहे हैं* , तो अवाम की आवाज़ कौन बनेगा?

इस खामोशी को देखकर लगता है जैसे या तो सियासी नेतृत्व *आंदोलन से बचना चाहता है,* या फिर उन्हें अब *कौम के मसलों से सरोकार नहीं रहा।* 

 *क्या यह चुप्पी लंबी चलेगी?* 

इतिहास गवाह है कि जब-जब मुसलमानों की हक़ की बात आई, भोपाल ने आवाज़ बुलंद की है। क्या इस बार ऐसा नहीं होगा?

क्या इस बार का सन्नाटा *कौमी हक़ के नुकसान* में तब्दील हो जाएगा?

या फिर ये खामोशी एक *तूफान से पहले की खामोशी है?

 मध्य प्रदेश के मुसलमानों को अब खुद तय करना होगा कि:

वो अपने हक़ के लिए खड़े होंगे या सिर्फ रहनुमाओं की ओर देखते रहेंगे?

वो सवाल पूछेंगे या खामोशी की चादर ओढ़े रहेंगे?

वो अपने वक़्फ़ की हिफ़ाज़त करेंगे या उसे भी सिर्फ इतिहास की किताबों में पढ़ेंगे?

वक़्फ़ संशोधन एक्ट 2025 मुसलमानों के वजूद और उनकी धार्मिक पहचान से जुड़ा मुद्दा है। मध्य प्रदेश के लोगों की खामोशी जितनी हैरान करने वाली है, उतनी ही चिंता जनक भी। अब वक्त आ गया है कि समाज, नेतृत्व और अवाम – तीनों अपनी जिम्मेदारियों को समझें और इस खामोशी को हक़ की आवाज़ में बदलें।

क्योंकि अगर आज नहीं बोले, तो कल ओरशायद बोलने के लिए कुछ बचेगा ही नहीं।

   

 

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