
२५ सप्टेंबर जन्मदिन *आदरणीय राजाभाऊ खोब्रागडे *बाबा साहेबआंबेडकर के सच्चे सपूत को अभिनंदन
.२५ सप्टेंबर जन्मदिन
*आदरणीय राजाभाऊ खोब्रागडे * बाबा साहेब आंबेडकर के सच्चे सपूत को अभिनंदन
एक समय बैरिस्टर राजाभाऊ देवाजी खोब्रागडे को बाबासाहब डॉ. आंबेडकर का दायाँ हाथ कहा जाता था। वे सचमुच सही अर्थो मे बाबा के वारिस थे। चाहे सामाजिक क्षेत्र हो या धार्मिक क्षेत्र हो। चाहे लोगो को रिपब्लिकन पार्टी से जोडने का कार्य हो, या फिर दलितो मे शिक्षा के प्रसार का, राजाभाऊ खोब्रागडे तन कर बाबासाहब के पीछे खडे होते थे। बाबासाहब के ऐसे सिपहसालार का जन्म चंद्रपुर मे हुआ था। आपके बचपन का नाम भाउराव था मगर प्यार से इन्हे राजाभाऊ कह कर लोग पुकारते थे। इनके पिताजी का नाम देवाजी खोब्रागडे था। देवाजी खोब्रागडे एक खाते-पीते परिवार के थे। एक बार बाबासाहेब भाषण दे रहे थे। अपने लोगो को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि, समाज उन्हे एक-दो लडके चाहिए जिन्हे समाज के लिए कुछ करने लायक वे उन्हे बना सके। तब, देवाजी ने भीड मे से खडे हो कर कहा था कि, बाबासाहब ये मेरा लडका लीजिए, मै इसे आपको देता हूँ। वह लडका राजाभाऊ खोब्रागडे ही था। राजाभाऊ पढने लिखने मे शुरू से ही होशियार था। स्कूल और कालेज लाइफ मे उसकी पढाई और निखर कर आई। पढने लिखने के आलावा लीडरशिप के गुण राजाभाऊ मे शुरू से ही थे। सन 1943-1945 की अवधि मे वे शेड्यूल्ड कास्ट स्टूडेंट फेडरेशन के वे महासचिव चुने गए। आपने अपनी आवाज को लोगो तक पहुँचाने के लिए ‘प्रजा सत्ता’ नामक एक साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन किया था। राजाभाऊ के पत्नी का नाम इंदुमती था। राजाभाऊ उच्च शिक्षा के लिए सन 1950 मे लंदन गए थे। वहा पर उन्होंने बार-एट-लॉ की पढाई पूरी की। बैरिस्टर बन कर लंदन से लौट आने के बाद राजाभाऊ ने अंतिम साँस तक बाबासाहब के मिशन के लिए काम किया, जैसे कि उनके पिता की आज्ञा थी। तब बैरिस्टर बनाना बहुत बडी बात थी। लोग चाहे जिस समाज के हो, उन्हे ‘बैरिस्टर साहब’ कह कर पुकारते थे। दलित समाज मे वे बाबासाहब के बाद, दूसरे व्यक्ति थे जिन्होंने विदेश मे जाकर बैरिस्टर होने की पढाई की थी।
सामाजिक कार्यो मे भागीदारी के कारण सन 1952 मे वे चंद्रपुर मुनिसिपल काउन्सिल के वाइस प्रेसिडेंस चुने गए थे। सन 1954 मे भंडारा से जब बाबासाहब ने लोकसभा का चुनाव लडा था, तब राजाभाऊ खोब्रागडे ने कंधे से कंधा भिडा कर बाबासाहब का साथ दिया था। बाबासाहब के द्वारा 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर मे ली गई ऐतिहासिक धम्म-दीक्षा के तुरंत बाद 16 अक्टूबर को चंद्रपुर मे धम्मदीक्षा का एक बडा कार्यक्रम सम्पन्न हुआ था, जिस मे करीब एक लाख लोगो ने बाबासाहब के नेतृत्व मे बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। चंद्रपुर मे सम्पन्न इस दूसरे एतिहासिक धम्म-दीक्षा कार्यक्रम के सूत्रधार बैरिस्टर राजाभाऊ खोब्रागडे ही थे। राजाभाऊ ने दलितो मे शिक्षा के प्रसार के क्षेत्र मे उल्लेखनीय कार्य किया। आपने चंद्रपुर और ब्रम्हपुरी मे डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के नाम की एजुकेशन सोसायटी स्थापित की। दीक्षा भूमि नागपुर मे आपने ‘डॉ. बाबासाहब आंबेडकर कालेज ऑफ आर्ट्स, कामर्स एंड साइंस’ की स्थापना की। शुरुआत मे दलितो की राजनैतिक आकांक्षाओ की पूर्ति के लिए जुलाई 1942 मे ‘शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन’ नामक एक राजनैतिक पार्टी की स्थापना नागपुर अधिवेशन मे की गई थी। पी.एन. राजभोज के बाद बैरिस्टर राजाभाऊ खोब्रागडे इसके महासचिव बनाए गए थे। यही शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन बाबासाहब के देहांत के बाद ‘रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया’ की शक्ल मे रूपांतरित किया गया। राजाभाऊ खोब्रागडे ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के लिए अपना अमूल्य योगदान दिया है। दलित समाज शायद ही उससे ऊऋण हो सके। बाबासाहब के देहांत के बाद वे पार्टी के महासचिव चुने गए थे। राजाभाऊ खोब्रागडे ने दिसंबर 1969 से लेकर अप्रैल 1972 की अवधि मे राज्य सभा के डिप्टी स्पीकर का पद सुशोभित किया था। वे तीन बार सन 1958, 1966, 1978 मे राज्यसभा के सदस्य चुने गए थे। 23 अप्रैल 1984 को यह विभूति सदा सदा के लिए देश के दलितो को अलविदा कह गई। भारत सरकार ने ऐसी महान हस्ती के सम्मान मे 11 नवंबर 2009 को डाक टिकिट जारी कर देश के निर्माण में उनको याद किया।