
सारनी त्रिरत्न बुद्ध विहार में अश्विनी पूर्णिमा वर्षावास समापन ।
सारनी त्रिरत्न बुद्ध विहार में अश्विनी पूर्णिमा वर्षावास समापन ।
अश्विनी पूर्णिमा के पावन अवसर पर बुद्ध विहार में वर्षावास कार्यक्रम का समापन बड़े ही श्रद्धा और उत्साह के साथ सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर पूज्य भंते रत्नबौधी जी के करकमलों से त्रिसरण एवं पंचशील प्रदान किया गया। सभी उपासक एवं उपासिकाएँ श्वेत वस्त्र धारण कर विहार पहुँचीं और पूरे परिसर को विविध पुष्पों से सजाया गया, जिससे वातावरण अत्यंत शांतिमय और दिव्य हो गया।
कार्यक्रम के दौरान पूज्य भंते रत्नबौधी जी ने अश्विनी पूर्णिमा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि आज ही के दिन तथागत भगवान बुद्ध ने तावतिंस देवलोक में अपनी माता महामाया देवी तथा देवगणों को अभिधम्म ज्ञान का उपदेश दिया था। तीन माह के उपदेश के उपरांत वे सांकश्य नगर में अवतीर्ण हुए और समस्त जगत को शांति और करुणा का संदेश प्रदान किया।
भंते जी ने यह भी बताया कि इसी पूर्णिमा के दिन श्रीलंका के थूपाराम सारनंद चैत्य विहार में विनयपिटक का उच्चारण सम्पन्न हुआ था, जिसकी अध्यक्षता पूज्य अर्हंत भिक्खू महेंद्र जी ने की थी। प्रथम धम्म संगति का समापन भी इसी दिन हुआ था। अर्हंत महेंद्र जी के अनुरोध पर श्रीलंका के राजा देवानाम तिष्य ने सम्राट अशोक से निवेदन किया था कि भिक्खूनी संघमित्रा को श्रीलंका भेजकर वहाँ भिक्खूनी संघ की स्थापना की जाए।
अश्विनी पूर्णिमा को महाप्रवारणा उत्सव के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन बौद्ध भिक्खू अपने त्रैमासिक वर्षावास का समापन करते हैं तथा आपसी धम्म-चर्चा, उपदेश और ज्ञान का आदान-प्रदान करते हैं। यह दिन कठिन चीवर दान की भी शुरुआत का प्रतीक है, जो एक महीने तक कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है।
भंते जी ने कहा कि अश्विनी पूर्णिमा सम्राट अशोक और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के जीवन से भी गहराई से जुड़ी है। सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात इसी दिन शस्त्र त्यागकर बुद्ध धम्म को स्वीकार किया था। वहीं, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने भी इसी दिन लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा लेकर नवयान आंदोलन की आधारशिला रखी थी।
कार्यक्रम के अंत में उपस्थित जनों ने बुद्ध वंदना और मैत्री भावना का पाठ किया तथा सभी ने मानवता, करुणा और मैत्री के पथ पर चलने का संकल्प लिया।