
खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकरण बनाम स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (2024 INSC 554): विस्तृत सारांश
खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकरण बनाम स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (2024 INSC 554): विस्तृत सारांश
भरत सेन अधिवक्ता बैतूल
परिचय
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया की नौ सदस्यीय पीठ ने 25 जुलाई 2024 को मिनरल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी एंड एनआर. बनाम एम/एस स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया एंड एनआर. आदि (MANU/SC/0770/2024: 2024 INSC 554) मामले में निर्णय दिया। यह निर्णय 8:1 के बहुमत से आया, जिसमें राज्यों को खदानों और खनिजों पर कर लगाने की शक्ति को बरकरार रखा गया। यह मामला खनिजों के नियमन और कराधान से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या करता है, विशेष रूप से सातवीं अनुसूची के सूची I (केंद्र) और सूची II (राज्य) के एंट्री 54, 23, 49 और 50 के बीच शक्तियों के विभाजन पर। यह निर्णय इंडिया सीमेंट लि. बनाम तमिलनाडु राज्य (1990) और वेस्ट बंगाल राज्य बनाम केसोरम इंडस्ट्रीज लि. (2004) जैसे पूर्व निर्णयों के विरोधाभासों को सुलझाता है। मामला माइंस एंड मिनरल्स (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट, 1957 (एमएमडीआर एक्ट) के तहत रॉयल्टी, डेड रेंट और राज्य स्तरीय सेस/करों से जुड़े विवादों पर केंद्रित है।
मामले का पृष्ठभूमि और तथ्य
यह विवाद 2011 के मिनरल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (2011) 4 SCC 450 निर्णय से उपजा, जहां सात सदस्यीय पीठ ने रॉयल्टी को कर माना था, जिससे राज्यों की खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति सीमित हो गई। 2004 के पांच सदस्यीय पीठ के निर्णय ने स्पष्ट किया कि रॉयल्टी कर नहीं है, जिससे संदेह उत्पन्न हुए और 30 मार्च 2011 को नौ सदस्यीय पीठ को रेफर किया गया।
एमएमडीआर एक्ट (सूची I की एंट्री 54 के तहत) ने 1948 के एक्ट को प्रतिस्थापित किया, जिसमें धारा 9 (रॉयल्टी), 9A (डेड रेंट) आदि शामिल हैं, जो खनिज मूल्य निर्धारण और राष्ट्रीय हितों के लिए एकसमानता सुनिश्चित करते हैं। विवाद राज्य स्तरीय सेस (जैसे बिहार कोल माइनिंग एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी एक्ट, 1992) से जुड़े, जहां उच्च न्यायालयों ने इन्हें असंवैधानिक घोषित किया। ऐतिहासिक रूप से, खनिज अधिकार अंग्रेजी कानून और औपनिवेशिक प्रथाओं से विकसित हुए, और एमएमडीआर एक्ट तथा मिनरल कंसेशन रूल्स, 1960 के तहत लीज और लाइसेंस के बीच भेद स्पष्ट किया गया। अपीलें कई सिविल अपील्स, रिट याचिकाओं और विशेष अनुमति याचिकाओं (जैसे सिविल अपील नं. 4056-4064/1999) से संबंधित हैं।
उल्लिखित प्रश्न
नौ सदस्यीय पीठ ने रेफर्ड प्रश्नों को पुनः फ्रेम किया। मुख्य प्रश्न निम्नलिखित हैं (तालिका में संक्षिप्त रूप से):
ख्य विवरणaएमएमडीआर एक्ट की धारा 9/15(1)/15(3) के तहत रॉयल्टी की वास्तविक प्रकृति: क्या यह कर या कोई अन्य लगान है?bसूची II की एंट्री 50 का दायरा, जिसमें संसद द्वारा सूची I की एंट्री 54 के तहत लगाई गई सीमाओं का प्रभाव; क्या एमएमडीआर एक्ट एंट्री 50 को सीमित करता है?cक्या एंट्री 50 में “खनिज विकास संबंधी संसद द्वारा लगाई गई किसी भी सीमा के अधीन” सूची I की एंट्री 54 के अधीन है? क्या यह एम पी वी सुंदरारामियर योजना से विचलन है?dसूची II की एंट्री 49 का दायरा: क्या यह भूमि उत्पादन मूल्य से मापित करों को कवर करता है, विशेष रूप से खनन भूमि को, एंट्री 50 और 54 को ध्यान में रखते हुए?eक्या एंट्री 50 एंट्री 49 के लिए विशिष्ट है, जिससे खनन भूमि एंट्री 49 से बाहर हो जाती है?fक्या राज्य एंट्री 49 के तहत खनिज-युक्त भूमि पर कर लगा सकते हैं, जिसमें खनिज उत्पादन/रॉयल्टी को मापक के रूप में उपयोग किया जा सकता है, बिना एंट्री 50 से ओवरलैप के?gसूची II की एंट्री 23 और सूची I की एंट्री 54 के बीच अंतर्संबंध, और एंट्री 49/50 के तहत राज्य कर शक्तियों पर प्रभाव।
नोट: एंट्री 53 (तेल क्षेत्र, खनिज तेल) की व्याख्या को परामर्शदाताओं के समझौते से बाहर रखा गया।
दोनों पक्षों के तर्क
अपीलीय पक्ष (राज्य/कर लगाने वाले):
रॉयल्टी खनन अधिकारों के लिए संविदात्मक प्रतिफल है, न कि कर (अनुच्छेद 366(28) के मानदंड अनुपालन नहीं); एंट्री 49 राज्य को खनिज-युक्त भूमि पर कर लगाने की अनुमति देती है, जिसमें खनिज मूल्य/रॉयल्टी को मापक बनाया जा सकता है।
एंट्री 54 और 23 नियामक हैं, न कि कराधान संबंधी; एमएमडीआर एक्ट राज्य कर शक्तियों को स्पष्ट रूप से सीमित नहीं करता; सीमाएं स्पष्ट होनी चाहिए।
भूमिगत खनिज भूमि स्वामित्व का अनुसरण करते हैं; धारा 9 रॉयल्टी को सीमित करती है, लेकिन राज्य कर शक्तियों को नहीं; भूमि उत्पादकता को कर मापक के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
एमएमडीआर एक्ट नियमन करता है, कर नहीं; राज्य रॉयल्टी प्राप्त कर सकते हैं और खनिजों पर कर लगा सकते हैं; एंट्री 50 में “किसी भी सीमा” का अर्थ निषेध नहीं।
एंट्री 50 के तहत कर पट्टेदारों पर लगाए जा सकते हैं, न कि केवल भूमि मालिकों पर; एंट्री 50 सुंदरारामियर सिद्धांत का अपवाद नहीं; एंट्री 49 के साथ ओवरलैप नहीं।
उत्तरदायी पक्ष (केंद्र/खनन कंपनियां):
रॉयल्टी कर है, क्योंकि यह सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अनिवार्य लगान है; एंट्री 54 के तहत संसद को खनिज अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार है।
एमएमडीआर एक्ट एंट्री 50 पर सीमाएं लगाता है, जो एंट्री 49 को भी प्रभावित करता है; खनिज-युक्त भूमि एंट्री 49 के “भूमि” में नहीं आती।
राज्य कर खनन गतिविधियों को प्रभावित करेंगे, जो केंद्र के एकाधिकार क्षेत्र में हैं; रॉयल्टी को मापक बनाने से दोहरी कराधान होगी।
इंडिया सीमेंट निर्णय बरकरार रखा जाए; संसद की सीमाएं राज्य शक्तियों को ओवरराइड करती हैं।
बहुमत का मत (न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, सीजेआई सहित 8 न्यायमूर्ति)
बहुमत ने निम्नलिखित प्रमुख निष्कर्ष दिए:
रॉयल्टी की प्रकृति: रॉयल्टी कर नहीं है। यह खनन पट्टेदार द्वारा पट्टादाता को खनिज अधिकारों के आनंद के लिए चुकाया जाने वाला संविदात्मक प्रतिफल है। अनुच्छेद 366(29) के तहत यह लीज का हिस्सा है, न कि कर (सार्वजनिक उद्देश्य, अनिवार्यता आदि मानदंड अनुपालन नहीं)।
राज्य की कर शक्ति: खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी शक्ति राज्य विधानसभाओं के पास है। एमएमडीआर एक्ट राज्य शक्तियों पर कोई सीमा नहीं लगाता।
संसद की सक्षमता: सूची I की एंट्री 54 के तहत संसद को खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी सक्षमता नहीं है।
एंट्री 49 का उपयोग: सूची II की एंट्री 49 के तहत खनिज मूल्य या उत्पादन को भूमि पर कर लगाने के मापक के रूप में उपयोग किया जा सकता है। खनिज-युक्त भूमि एंट्री 49 के “भूमि” के वर्णन में आती है।
एंट्री 50 और सीमाएं: अनुच्छेद 246 के साथ एंट्री 49 के तहत राज्य विधानसभाओं को खदानों और क्वारियों वाली भूमियों पर कर लगाने की सक्षमता है। संसद द्वारा खनिज विकास संबंधी कानून में लगाई गई “सीमाएं” एंट्री 50 पर लागू होती हैं, लेकिन एंट्री 49 पर नहीं, क्योंकि संविधान में कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है।
कारण: बहुमत ने केसोरम इंडस्ट्रीज को बरकरार रखा और इंडिया सीमेंट को ओवररूल किया। खनन भूमि “भूमि” है, और राज्य कर राष्ट्रीय हितों को प्रभावित नहीं करते यदि वे नियामक नहीं हैं। सुंदरारामियर सिद्धांत के अनुसार, संघीय शक्तियां राज्य शक्तियों को ओवरराइड नहीं करतीं जब तक स्पष्ट न हो।
मतभेदपूर्ण मत (न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना)
रॉयल्टी की प्रकृति: रॉयल्टी कर या लगान है, न कि केवल संविदात्मक भुगतान।
राज्य की कर शक्ति: खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति राज्य विधानसभाओं के पास है, लेकिन सूची II की एंट्री 50 के तहत संसद राज्य शक्तियों पर सीमाएं लगा सकती है।
संसद की भूमिका: सूची I की एंट्री 54 के तहत संसद को स्पष्ट रूप से खनिज अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार नहीं, लेकिन वह खनिजों पर राज्य करों पर सीमाएं लगा सकती है।
एंट्री 49 का उपयोग: खनिज उत्पादित मूल्य को सूची II की एंट्री 49 के तहत खनिज-युक्त भूमि पर कर लगाने के मापक के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता।
एंट्री 49 की सीमा: अनुच्छेद 246 के साथ एंट्री 49 के तहत राज्य विधानसभाओं को भूमि और भवनों पर कर लगाने की सक्षमता है, लेकिन खदानों, क्वारियों या खनिज जमा वाली भूमियों पर नहीं।
सीमाओं का प्रभाव: संसद द्वारा खनिज विकास संबंधी कानून में लगाई गई सीमाएं राज्य विधानसभा की खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति को प्रतिबंधित करती हैं।
कारण: मतभेदपूर्ण मत ने इंडिया सीमेंट को बरकरार रखा, तर्क देते हुए कि खनिज विकास राष्ट्रीय विषय है, और राज्य कर केंद्र के नियमन को कमजोर करेंगे। एंट्री 49 खनन भूमि को बाहर रखती है, और सीमाएं एंट्री 49 को भी प्रभावित करती हैं।
निष्कर्ष
यह निर्णय राज्यों को खनिज-युक्त भूमियों पर कर लगाने की व्यापक शक्ति प्रदान करता है, बिना एमएमडीआर एक्ट की सीमाओं के, जो खनन उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है। यह पूर्व विरोधाभासी निर्णयों को सुलझाता है और संघीय ढांचे में राज्य स्वायत्तता को मजबूत करता है। हालांकि, मतभेदपूर्ण मत ने चेतावनी दी कि अत्यधिक राज्य कर राष्ट्रीय खनिज नीति को प्रभावित कर सकते हैं। निर्णय कई राज्य कानूनों (जैसे बिहार, ओडिशा आदि के सेस) को वैधता प्रदान करता है, लेकिन आगे विधायी स्पष्टता की आवश्यकता पर जोर देता है।